Tuesday 3 January 2012

अजनबी देश है यह..!!
















अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है
कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता है

जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई,
नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता है

होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक्त
द्वार मेरा कोई उस वक्त खटखटाता है

शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा
कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है

देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं,
फिर वही रात है, फिर-फिर वही सन्नाटा है

हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में
रास्ता है कि कहीं और चला जाता है

दिल को नासेह की ज़रूरत है न चारागर की
आप ही रोता है औ आप ही समझाता है ।

हार जीत के बीच में..!!



















हार जीत के बीच में जीवन इक संगीत।
मिलन होय मनमीत से हार बने तब जीत।।

डोर बढ़े जब प्रीत की बनते हैं तब मीत।
वही मीत जब संग हो जीवन बने अजीत।।

रोज परिन्दों की तरह सपने भरे उड़ान।
यदि सपने जिन्दा रहे लौटेगी मुस्कान।।

रौशन सूरज चाँद से सबका घर संसार।
पानी भी सबके लिए क्यों होता व्यापार।।

रोना भी मुश्किल हुआ आँखें हैं मजबूर।
पानी आँखों में नहीं जड़ से पानी दूर।।

निर्णय शीतल कक्ष से अब शासन का मूल।
व्याकुल जनता हो चुकी मत कर ऐसी भूल।।

सुमन के भीतर आग है खोजे कुछ परिणाम।
मगर पेट की आग ने बदल दिया आयाम।।

श्यामल सुमन

तुम्हीं मिटाओ मेरी उलझन..!!




तुम्ही मिटाओ मेरी उलझन
कैसे कहूँ कि तुम कैसी हो
कोई नहीं सृष्टि में तुम-सा
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो। 
ब्रह्मा तो केवल रचता है
तुम तो पालन भी करती हो
शिव हरते तो सब हर लेते
तुम चुन-चुन पीड़ा हरती हो
किसे सामने खड़ा करूँ मैं
और कहूँ फिर तुम ऐसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।


ज्ञानी बुद्ध प्रेम बिना सूखे
सारे देव भक्ति के भूखे
लगते हैं तेरी तुलना में
ममता बिन सब रुखे-रुखे
पूजा करे सताए कोई
सब के लिए एक जैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।


कितनी गहरी है अदभुत-सी
तेरी यह करुणा की गागर
जाने क्यों छोटा लगता है
तेरे आगे करुणा-सागर
जाकी रही भावना जैसी
मूरत देखी तिन्ह तैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसै हो।।


मेरी लघु आकुलता से ही
कितनी व्याकुल हो जाती हो
मुझे तृप्त करने के सुख में
तुम भूखी ही सो जाती हो।
सब जग बदला मैं भी बदला
तुम तो वैसी की वैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।


तुम से तन मन जीवन पाया
तुमने ही चलना सिखलाया
पर देखो मेरी कृतघ्नता
काम तुम्हारे कभी न आया
क्यों करती हो क्षमा हमेशा
तुम भी तो जाने कैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।


           -शास्त्री नित्यगोपाल कटारे

पैसे से आप यह सब नहीं खरीद सकते..!!

“यदि आपके पास ऐसा कुछ नहीं है जिसे पैसे से नहीं खरीदा जा सकता तो आप धनी नहीं हैं” – गार्थ ब्रुक



१ – प्यार की पहली छुअन – इसके बारे में क्या कहूँ:)

२ – सच्चे प्यार का अहसास – यह अहसास कि आपने सही व्यक्ति से विवाह किया:)

३ – सुन्दरता – क्योंकि सुन्दरता तो देखनेवाले की आंखों में होती है

४ – सच्ची दोस्ती – वे लम्हे जब दोस्त आपके साथ थे जब आपको उनकी ज़रूरत थी

५ – मानसिक शान्ति – जीवन में तृप्ति और संतोष के पल

६ – पहली बार कुछ नया करने जा रहे बच्चे (या बड़े) की आँखों की चमक

७ – किसी दिलचस्प वाक़ये को सुनाने का मज़ा

८ – खुशी – बहुत बड़ी चीज़

९ – सफलता – जिसे आप करना चाहते हैं उसी को करने का अवसर मिलना

१० – ज़िन्दगी का एक पल – जो एक बार जाता है तो कभी वापस नहीं आता

११ – बच्चे की किलकारियां

१२ – राह में अचानक बिछड़े हुए से मुलाकात

१३ – लक्ष्य को पाने अहसास

१४ – पहली बारिश में मिटटी से उठती सोंधी महक

१५ – बहुत अच्छा वार्तालाप – मुश्किल ही होता है

१६ – अप्रत्याशित बधाई – जिसकी या जिससे उम्मीद न की हो

१७ – अपने विचारों को साकार होते देखना

१८ – अचानक ही भूला-बिसरा गीत कानों में पड़ना

१९ – रस्ते में फिसलकर संभलनेवाले का यह जताना जैसे कुछ हुआ ही न हो:)

२० – रिमझिम बारिश में सहसा सूरज का किरणें बिखेर देना

२१ – सही वक़्त पर सही जगह पर होना

२२ – किशोरावस्था का प्यार – जब दुनिया सहसा बदल जाती है

२३ – बचपन की यादें – जब दुनियादारी कोसों दूर थी

२४ – दोस्तों के साथ बैठकर बीते दिनों को याद करना

२५ – उमंग-उत्साह – अपने दिल के कहने पर चलना

२६ – घर के कबाड़ में पुराने फोटो और उपहार मिल जाना

२७ – बहुत दिनों बाद घर आने पर होने वाला अहसास

२८ – दूसरों से पहले किसी चुटकुले का मतलब समझ कर हंस देना

२९ – ख़ुद में कोई छुपा हुआ हुनर

३० – किसी के चेहरे पर मुस्कान लाना

३१ – भरे-पूरे परिवार के साथ बैठकर खाना खाना

३२ – अपने बिस्तर की गर्माहट

३३ – प्रकृति के साथ एकात्म का भाव

३४ – घर – पैसे से मकान खरीद सकते हैं, लेकिन उसे घर नहीं बना सकते because home is where the heart is

३५ – दिमाग का खुलापन

३६ – लोगों को बेवकूफियां करते देखना

३७ – प्रेमी के साथ सूरज को उगते और डूबते देखना

३८ – लहरों के मंथन का शोर

३९ – “I love you”

४० – जब किसी को आपका जन्मदिन याद रह जाए

४१ – उस खोयी हुई चीज़ का मिल जाना जिसके मिलने की आस टूट चुकी हो

४२ – कला के लिए प्रेरणा

४३ – प्यारे से अजनबी की आँखों से ऑंखें मिल जाना

४४ – जादू की झप्पी

४५ – बिना किसी की परवाह किए गाते रहना

४६ – सर्दी में मुंह से निकलने वाली भाप जिसे देखकर बच्चे खुशी से उछलते हैं

४७ – स्वीकार कर लिए जाने का अहसास

४८ – बादलों में आकृतियां देखना

४९ – नवजात को हाथों में उठाना

५० – यह यकीन कि आप किसी पर भरोसा कर सकते हैं

५१ – आग जलाकर उसके इर्द-गिर्द दोस्तों के साथ बैठना

५२ – दो बुजुर्गों को प्यार में डूबे देखना

५३ – चांदनी रात का नशीलापन

५४ – झील में पानी पर पत्थरों को उछालना

५५ – दूर कहीं बिजली चमकती देखना

५६ – यह जानना कि आप जब लौटेंगे तो वह वहीं मिलेगी

५७ – वसंत का आगमन

५८ – उसे सोते हुए देखना:)

५९ – यह जानना कि जो आप लिखते हैं उसे कोई पढता भी है

६० – कमेन्ट पाना :)

पांच मिनट...!!




रेगिस्तान में एक आदमी के पास यमदूत आया लेकिन आदमी उसे पहचान नहीं सका और उसने उसे पानी पिलाया.

“मैं मृत्युलोक से तुम्हारे प्राण लेने आया हूँ” – यमदूत ने कहा – “लेकिन तुम अच्छे आदमी लगते हो इसलिए मैं तुम्हें पांच मिनट के लिए नियति की पुस्तक दे सकता हूँ. इतने समय में तुम जो कुछ बदलना चाहो, बदल सकते हो”.

यमदूत ने उसे नियति की पुस्तक दे दी. पुस्तक के पन्ने पलटते हुए आदमी को उसमें अपने पड़ोसियों के जीवन की झलकियाँ दिखीं. उनका खुशहाल जीवन देखकर वह ईर्ष्या और क्रोध से भर गया.

“ये लोग इतने अच्छे जीवन के हक़दार नहीं हैं” – उसने कहा, और कलम लेकर उनके भावी जीवन में भरपूर बिगाड़ कर दिया.

अंत में वह अपने जीवन के पन्नों तक भी पहुंचा. उसे अपनी मौत अगले ही पल आती दिखी. इससे पहले कि वह अपने जीवन में कोई फेरबदल कर पाता, मौत ने उसे अपने आगोश में ले लिया.

अपने जीवन के पन्नों तक पहुँचते-पहुँचते उसे मिले पांच मिनट पूरे हो चुके थे.