Saturday 12 December 2020

बुरे वक़्तो में तुम मुझसे न कोई राब्ता रखना..!!

बुरे वक़्तो में तुम मुझसे न कोई राब्ता रखना
मैं घर को छोड़ने वाला हूँ अपना जी कड़ा रखना

जो बा हिम्मत हैं दुनिया बस उन्हीं का नाम लेती है
छुपा कर ज़ेहन में बरसो मेरा ये तजरूबा रखना

जो मेरे दोस्त हैं अकसर मैं उन लोगों से कहता हूँ
कि अपने दुश्मनों के वास्ते दिल में जगह रखना

मेरे मालिक मुझे आसनियों ने कर दिया बुज़दिल
मेरे रास्ते में अब हर गाम पर इक मरहला रखना

मैं जाता हूँ मगर आँखों का सपना बन के लौटूगा
मेरी ख़ातिर कम-अज-कम दिल का दरवाज़ा खुला रखना..!!

मैं जा रहा हूँ मेरा इन्तेज़ार मत करना..!!

मैं जा रहा हूँ मेरा इन्तेज़ार मत करना
मेरे लिये कभी भी दिल सोगवार मत करना

मेरी जुदाई तेरे दिल की आज़माइश है
इस आइने को कभी शर्मसार मत करना

फ़क़ीर बन के मिले इस अहद के रावण
मेरे ख़याल की रेखा को पार मत करना

ज़माने वाले बज़ाहिर तो सबके हैं हमदर्द
ज़माने वालों का तुम ऐतबार मत करना

ख़रीद देना खिलौने तमाम बच्चों को
तुम उन पे मेरा आश्कार मत करना

मैं एक रोज़ बहरहाल लौट आऊँगा
तुम उँगुलियों पे मगर दिन शुमार मत करना..!!

Thursday 3 December 2020

सबकी बात न माना कर..!!

सबकी बात न माना कर
खुद को भी पहचाना कर

दुनिया से लड़ना है तो
अपनी ओर निशाना कर 

या तो मुझसे आकर मिल
या मुझको दीवाना कर 

बारिश में औरों पर भी
अपनी छतरी ताना कर 

बाहर दिल की बात न ला
दिल को भी तहखाना कर 

शहरों में हलचल ही रख
मत इनको वीराना कर..!!

चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया..!!

चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया
पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया 

जागा रहा तो मैंने नए काम कर लिए
ऐ नींद आज तेरे न आने का शुक्रिया 

सूखा पुराना ज़ख्म नए को जगह मिली
स्वागत नए का और पुराने का शुक्रिया 

आतीं न तुम तो क्यों मैं बनाता ये सीढ़ियाँ
दीवारों, मेरी राह में आने का शुक्रिया 

आँसू-सा माँ की गोद में आकर सिमट गया
नज़रों से अपनी मुझको गिराने का शुक्रिया 

अब यह हुआ कि दुनिया ही लगती है मुझको घर
यूँ मेरे घर में आग लगाने का शुक्रिया

ग़म मिलते हैं तो और निखरती है शायरी
यह बात है तो सारे ज़माने का शुक्रिया 

अब मुझको आ गए हैं मनाने के सब हुनर
यूँ मुझसे `कुँअर' रूठ के जाने का शुक्रिया..!!