Sunday 16 February 2014

एक आशीर्वाद..!!



जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।
हँसें
मुस्कुराऐं
गाऐं।
हर दीये की रोशनी देखकर ललचायें
उँगली जलायें।
अपने पाँव पर खड़े हों।

बढ़े चलो..!!


वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो

साथ में ध्वजा रहे
बाल दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं
दल कभी रुके नहीं

सामने पहाड़ हो
सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर,हटो नहीं
तुम निडर,डटो वहीं

वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो

प्रात हो कि रात हो
संग हो न साथ हो
सूर्य से बढ़े चलो
चन्द्र से बढ़े चलो

वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो

एक ध्वज लिये हुए
एक प्रण किये हुए
मातृ भूमि के लिये
पितृ भूमि के लिये
वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो

अन्न भूमि में भरा
वारि भूमि में भरा
यत्न कर निकाल लो
रत्न भर निकाल लो
वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो

Friday 14 February 2014

मुहाजिर नामा..!!


मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं,
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं ।

कहानी का ये हिस्सा आज तक सब से छुपाया है,
कि हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं ।

नई दुनिया बसा लेने की इक कमज़ोर चाहत में,
पुराने घर की दहलीज़ों को सूना छोड़ आए हैं ।

अक़ीदत से कलाई पर जो इक बच्ची ने बाँधी थी,
वो राखी छोड़ आए हैं वो रिश्ता छोड़ आए हैं ।

किसी की आरज़ू के पाँवों में ज़ंजीर डाली थी,
किसी की ऊन की तीली में फंदा छोड़ आए हैं ।

पकाकर रोटियाँ रखती थी माँ जिसमें सलीक़े से,
निकलते वक़्त वो रोटी की डलिया छोड़ आए हैं ।

जो इक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती है,
वहीं हसरत के ख़्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं ।

यक़ीं आता नहीं, लगता है कच्ची नींद में शायद,
हम अपना घर गली अपना मोहल्ला छोड़ आए हैं ।

हमारे लौट आने की दुआएँ करता रहता है,
हम अपनी छत पे जो चिड़ियों का जत्था छोड़ आए हैं ।

हमें हिजरत की इस अन्धी गुफ़ा में याद आता है,
अजन्ता छोड़ आए हैं एलोरा छोड़ आए हैं ।

सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते थे वहाँ जब थे,
दिवाली छोड़ आए हैं दशहरा छोड़ आए हैं ।

हमें सूरज की किरनें इस लिए तक़लीफ़ देती हैं,
अवध की शाम काशी का सवेरा छोड़ आए हैं ।

गले मिलती हुई नदियाँ गले मिलते हुए मज़हब,
इलाहाबाद में कैसा नज़ारा छोड़ आए हैं ।

हम अपने साथ तस्वीरें तो ले आए हैं शादी की,
किसी शायर ने लिक्खा था जो सेहरा छोड़ आए हैं ।

कई आँखें अभी तक ये शिकायत करती रहती हैं,
के हम बहते हुए काजल का दरिया छोड़ आए हैं ।

शकर इस जिस्म से खिलवाड़ करना कैसे छोड़ेगी,
के हम जामुन के पेड़ों को अकेला छोड़ आए हैं ।

वो बरगद जिसके पेड़ों से महक आती थी फूलों की,
उसी बरगद में एक हरियल का जोड़ा छोड़ आए हैं ।

अभी तक बारिसों में भीगते ही याद आता है,
के छप्पर के नीचे अपना छाता छोड़ आए हैं ।

भतीजी अब सलीके से दुपट्टा ओढ़ती होगी,
वही झूले में हम जिसको हुमड़ता छोड़ आए हैं ।

ये हिजरत तो नहीं थी बुजदिली शायद हमारी थी,
के हम बिस्तर में एक हड्डी का ढाचा छोड़ आए हैं ।

हमारी अहलिया तो आ गयी माँ छुट गए आखिर,
के हम पीतल उठा लाये हैं सोना छोड़ आए हैं ।

महीनो तक तो अम्मी ख्वाब में भी बुदबुदाती थीं,
सुखाने के लिए छत पर पुदीना छोड़ आए हैं ।

वजारत भी हमारे वास्ते कम मर्तबा होगी,
हम अपनी माँ के हाथों में निवाला छोड़ आए हैं ।

यहाँ आते हुए हर कीमती सामान ले आए,
मगर इकबाल का लिखा तराना छोड़ आए हैं ।

हिमालय से निकलती हर नदी आवाज़ देती थी,
मियां आओ वजू कर लो ये जूमला छोड़ आए हैं ।

वजू करने को जब भी बैठते हैं याद आता है,
के हम जल्दी में जमुना का किनारा छोड़ आए हैं ।

उतार आये मुरव्वत और रवादारी का हर चोला,
जो एक साधू ने पहनाई थी माला छोड़ आए हैं ।

जनाबे मीर का दीवान तो हम साथ ले आये,
मगर हम मीर के माथे का कश्का छोड़ आए हैं ।

उधर का कोई मिल जाए इधर तो हम यही पूछें,
हम आँखे छोड़ आये हैं के चश्मा छोड़ आए हैं ।

हमारी रिश्तेदारी तो नहीं थी हाँ ताल्लुक था,
जो लक्ष्मी छोड़ आये हैं जो दुर्गा छोड़ आए हैं ।

गले मिलती हुई नदियाँ गले मिलते हुए मज़हब,
इलाहाबाद में कैसा नाज़ारा छोड़ आए हैं ।

कल एक अमरुद वाले से ये कहना गया हमको,
जहां से आये हैं हम इसकी बगिया छोड़ आए हैं ।

वो हैरत से हमे तकता रहा कुछ देर फिर बोला,
वो संगम का इलाका छुट गया या छोड़ आए हैं।

अभी हम सोच में गूम थे के उससे क्या कहा जाए,
हमारे आन्सुयों ने राज खोला छोड़ आए हैं ।

मुहर्रम में हमारा लखनऊ इरान लगता था,
मदद मौला हुसैनाबाद रोता छोड़ आए हैं ।

जो एक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती है,
वहीँ हसरत के ख्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं ।

महल से दूर बरगद के तलए मवान के खातिर,
थके हारे हुए गौतम को बैठा छोड़ आए हैं ।

तसल्ली को कोई कागज़ भी चिपका नहीं पाए,
चरागे दिल का शीशा यूँ ही चटखा छोड़ आए हैं ।

सड़क भी शेरशाही आ गयी तकसीम के जद मैं,
तुझे करके हिन्दुस्तान छोटा छोड़ आए हैं ।

हसीं आती है अपनी अदाकारी पर खुद हमको,
बने फिरते हैं युसूफ और जुलेखा छोड़ आए हैं ।

गुजरते वक़्त बाज़ारों में अब भी याद आता है,
किसी को उसके कमरे में संवरता छोड़ आए हैं ।

हमारा रास्ता तकते हुए पथरा गयी होंगी,
वो आँखे जिनको हम खिड़की पे रखा छोड़ आए हैं ।

तू हमसे चाँद इतनी बेरुखी से बात करता है
हम अपनी झील में एक चाँद उतरा छोड़ आए हैं ।

ये दो कमरों का घर और ये सुलगती जिंदगी अपनी,
वहां इतना बड़ा नौकर का कमरा छोड़ आए हैं ।

हमे मरने से पहले सबको ये ताकीत करना है ,
किसी को मत बता देना की क्या-क्या छोड़ आए हैं ।

Wednesday 12 February 2014

Safar to Maine Kiya Tha..!!



Safar to Maine Kiya Tha 
Warna Saaz-O-Saman Uske They, 

Main to Bas Raazdaar Tha Uska 
warna Sare Raaz tu Uske They, 

Wo Dariya Me Pyasa Bhaitha Tha 
Jabke Samandar Tamam Uske They,

Woh Dhoop Me Bhaitha Hai Chaaw Dene Ko 
Jabke Darakt Sare Sayadaar Uske They. 

Or Yun to Bazahir Logo Me Maine Rizq Banta Tha, 
Lekin Dar Parda Sare Hath Uske They, 

Aur Maine Kamaal Bulandi Pe Jaker Socha umer, 
Ke Ye To Sare Kamaal Uske They..

Monday 10 February 2014

दम दमे में दम नहीं..!!



This relates to the time when Bahadur Shah Zafar,
last moghul emperor was imprisoned by British
Government in Rangoon. The dialogue took place
between King and the Jailor,who happened to be a
Englishman having good command over Urdu. The
Jailor on seeing the king in pensive mood said:-




दम दमे में दम नहीं अब खैर मांगो ज़ान क़ी
ए ज़फर बस हो चुकी शमशीर हिन्दुस्तान क़ी



This is the reply King gave on the spot:-

हिंदुयों में बू रहे गी जब तलक ईमान क़ी
तख्ते लंदन पर चले गी तेग हिन्दुस्तान क़ी..!!


Rahat Indori Collection 1



Har ek chehare ko zakhmon ka aina na kaho
Ye zindagi to hai rahamat ise saza na kaho
Na jane kaun si majaburiyon ka qaidi ho
Wo sath chor gaya hai to bewafa na kaho

Tamam shahar ne nezon pe kyun uchala mujhe
Ye ittefaq tha tum is ko hadasa na kaho

Ye aur bat ke dushman hua hai aj magar
Wo mera dost tha kal tak use bura na kaho

Hamare aib hamay ungaliyon pe ginwao
Hamari pith ke piche hamay bura na kaho

Main waqiyat ki zanjir ka nahi qayal
Mujhe bhi apane gunahon ka silsila na kaho

Ye shahar wo hai jahan rakshas bhi hai quot;rahat quot;
Har ek tarashe huye but ko dewata na kaho..!!

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Wafa Ko Aazmana Chahiye Tha Hamara Dil Dukhana Chahiye Tha
Aana Na Aana Meri Marzi Hai Tumko To Bulana Chahiye Tha

Hamari Khwahish Ek Ghar Ki Thi Use Sara Zamaana Chahiye Tha
Meri Aankhe Kaha Nam Hui Thi Samundar Ko Bahana Chahiye Tha

Jaha Par Panhuchna Main Chahta Hoon Waha Pe Panhuch Jana Chahiye Tha
Hamara Zakhm Purana Bahut Hai Chargar Bhi Purana Chahiye Tha

Mujhse Pahle Wo Kisi Aur Ki Thi Magar Kuch Shayrana Chahiye Tha
Chalo Mana Ye Choti Baat Hai Par Tumhe Sab Kuch Batana Chahiye Tha

Tera Bhi Shaher Me Koi Nahi Tha Mujhe Bhi Ek Thikana Chahiye Tha
Ke Kis Ko Kis Tarah Se Bhoolte Hain Tumhe Mujhko Sikhana Chahiye Tha

Aisa Lagta Hai Lahoo Mein Humko Kalam Ko Bhi Dubana Chahiye Tha
Ab Mere Saath Rah Ke Tanz Na Kar Tujhe Jana Tha Jana Chahiye Tha

Kya Bas Maine Hi Ki Hai Bewafaai Jo Bhi Sach Hai Batana Chahiye Tha
Meri Barbadi Pe Wo Chahta Hai Mujhe Bhi Muskurana Chahiye Tha

Bas Ek Tu Hi Mere Saath Mein Hai Tujhe Bhi Rooth Jana Chahiye Tha
Humare Paas Jo Ye Fan Hai Miya Hume Is Se Kamana Chahiye Tha

Ab Ye Taaj Kis Kaam Ka Hai Hume Sar Ko Bachana Chahiye Tha
Usi Ko Yaad Rakha Umar Bhar Ke Jisko Bhool Jana Chahiye Tha

Mujhse Baat Bhi Karni Thi Usko Gale Se Bhi Lagana Chahiye Tha
Usne Pyaar Se Bulaya Tha Hume Mar Ke Bhi Aana Chahiye Tha

Tumhe Use Pane Ke Khatir Kabhi Khud Ko Gawana Chahiye Tha..!!

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Masjidon ke sahan tak jana bahut dushwar tha
Der se nikala to mere raste may dar tha

Apane hi phailao ke nashe may khoya tha darakht
Aur har masum tahani par phalon ka bar tha

Dekhate hi dekhate shaharon ki raunaq ban gaya
Kal yahi chehara tha jo har aine pe bar tha

Sab ke dukh sukh us ke chehare pe likhe paye gaye
Adami kya tha hamare shahar ka akhabar tha

Ab mohalle bhar ke darawazon pe dastak hai nasib
Ek zamana tha ke jab main bhi bahut khuddar tha

Kagazon ki sab siyahi barishon may dhul gai
Ham ne jo socha tere bare may sab bekar tha..!!

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Kabhi akaile ma mil kar jhanjhoR doon ga usse
Jahan jahan se wo toota hai joR doon ga usse

Mujhe choR gaya ye kamaal hai us ka
Iraada ma ne kiya tha ke choR doon ga usse

Paseene baant'ta phirta hai har taraf sooraj
Kabhi jo haath laga to nichoR doon ga usse

Maza chakha ke hi maana hoon ma bhi dunya ko
Samajh rahi thi ke aise hi choR doon ga usse

Bacha ke rakhta hai khud ko wo mujh se shseesha badan
Usse ye dar hai ke toR phoR doon ga usse..!!

काँच की बरनी और दो कप चाय..!!


जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी – जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की
इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भीकम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , ” काँच की बरनी और दो कप चाय ” हमें याद आती है ।

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ
 पढाने वाले हैं …

उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने
लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समानेकी जगह नहीं बची … उन्होंने छात्रों से
पूछा – क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ … आवाज आई … फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे – छोटे कंकर उसमें भरने
शुरु किये h धीरे – धीरेबरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से
 प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ … कहा अबप्रोफ़ेसर साहब ने रेत
 की थैली से हौले – हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई ,
अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे … फ़िर प्रोफ़ेसरसाहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ?
हाँ .. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर
उसमें कीचाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई …

प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया –

इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ….

टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं ,

छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और

रेत का मतलब और भी छोटी – छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है ..

अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह
ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेतजरूर आ सकती थी …

ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है … यदि तुम छोटी – छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें
 नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहींरहेगा … मन के सुख के लिये क्या जरूरी है
ये तुम्हें तय करना है । अपने बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ
 , घर के बेकारसामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक – अप करवाओ … टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र
पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ….. पहले तय करो कि क्या जरूरी है … बाकी सब तोरेत है ..

छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि
 ” चाय के दो कप ” क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच ही रहा था कि अभीतक ये सवाल किसी ने क्यों
नहीं किया …

इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप
चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।

चाँदनी को क्या हुआ कि आग बरसाने लगी..!!


चाँदनी को क्या हुआ कि आग बरसाने लगी
झुरमुटों को छोड़कर चिड़िया कहीं जाने लगी

पेड़ अब सहमे हुए हैं देखकर कुल्हाड़ियाँ
आज तो छाया भी उनकी डर से घबराने लगी

जिस नदी के तीर पर बैठा किए थे हम कभी
उस नदी की हर लहर अब तो सितम ढाने लगी

वादियों में जान का ख़तरा बढ़ा जब से बहुत
अब तो वहाँ पुरवाई भी जाने से कतराने लगी

जिस जगह चौपाल सजती थी अंधेरा है वहाँ
इसलिए कि मौत बनकर रात जो आने लगी

जिस जगह कभी किलकारियों का था हुजूम
आज देखो उस जगह भी मुर्दनी छाने लगी..!!

Saturday 8 February 2014

“मैं जानता था...


दो बचपन के दोस्तों ने एक साथ एक ही स्कूल में पढ़ाई की, एक ही कॉलेज गए और सेना में भी एक ही साथ भर्ती हुए. युद्ध छिड़ने पर दोनों की तैनाती भी एक ही यूनिट में हुई. एक रात उनकी यूनिट चारों और से हो रही गोलीबारी में घिर गई और उनके बहुत से साथी शहीद हो गए.

घना अँधेरा छाया था और हर तरफ से गोलियां चलने की आवाज़ आ रही थी. किसी के बोलने की दर्दभरी आवाज़ आई – “सुनील, यहाँ आओ और मेरी मदद करो”. सुनील पहचान गया कि यह उसके बचपन के दोस्त हरीश की आवाज़ थी. उसने कैप्टन से उसके पास जाने की इजाज़त मांगी.

“नहीं!” – कैप्टन ने कहा – “मैं तुम्हें वहां जाने की इजाज़त नहीं दे सकता! हमारे इतने जवान मारे जा चुके हैं और मैं किसी और को खोना नहीं चाहता! तुम हरीश को नहीं बचा सकते, वह बहुत ज़ख्मी लगता है”.

सुनील चुपचाप बैठ गया. हरीश की आवाज़ फिर से आई – “सुनील, यहाँ आओ, मेरी मदद करो”.

सुनील चुपचाप बैठा रहा क्योंकि कैप्टन उसे जाने को मना कर चुका था. हरीश की दर्द भरी पुकार बार-बार आती रही. अंततः सुनील खुद को नहीं रोक सका. उसने कैप्टन से कहा – “कैप्टन, हरीश मेरे बचपन का दोस्त है. मैं उसकी मदद ज़रूर करूँगा”. कैप्टन ने अनिच्छापूर्वक उसे जाने दिया.

सुनील अँधेरे में खंदकों से गुज़रता हुआ हरीश तक पहुंचा और उसे अपनी खंदक में ले आया. कैप्टन ने जब यह देखा कि हरीश मर चुका है तो उसे सुनील पर बहुत गुस्सा आया और वह उसपर चिल्लाया – “मैंने तुम्हें वहां जाने को मना किया था ना! वो मर चुका था और उसके साथ तुम भी मारे जाते और यहाँ कोई नहीं बचता! तुमने कितनी बड़ी गलती की!”

सुनील ने कैप्टन से कहा – “नहीं कैप्टन, मैंने सही किया. मैं जब हरीश के पास पहुंचा तब वह जीवित था और मुझे देखकर उसने बस इतना कहा ‘सुनील, मैं जानता था तुम ज़रूर आओगे’”.