Tuesday 12 May 2020

उलझनों और कश्मकश में,उम्मीद की ढाल लिए बैठा हूँ..!!

उलझनों और कश्मकश में,
उम्मीद की ढाल लिए बैठा हूँ।

ए जिंदगी! तेरी हर चाल के लिए,
मैं दो चाल लिए बैठा हूँ |

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नींद आए या ना आए, चिराग बुझा दिया करो,
यूँ रात भर किसी का जलना, हमसे देखा नहीं जाता....!!!

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यहाँ हर किसी को, दरारों में झाकने की आदत है, 
दरवाजे खोल दो, कोई पूछने भी नहीं आएगा....!!!!

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तुझको सोचा तो पता हो गया रुसवाई को
मैंने महफूज़ समझ रखा था तन्हाई को

जिस्म की चाह लकीरों से अदा करता है
ख़ाक समझेगा मुसव्विर तेरी अँगडाई को

अपनी दरियाई पे इतरा न बहुत ऐ दरिया
एक कतरा ही बहुत है तेरी रुसवाई को

चाहे जितना भी बिगड़ जाए ज़माने का चलन
झूठ से हारते देखा नहीं सच्चाई को

साथ मौजों के सभी हो जहाँ बहने वाले
कौन समझेगा समन्दर तेरी गहराई को..!!

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जिसने भी इस ख़बर को सुना सर पकड़ लिया,

कल एक दिये ने आंधी का कॉलर पकड़ लिया..!!

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एक आंसू भी हुकूमत के लिए खतरा है,
तुमने देखा नहीं आँखों का समंदर होना..!!

किसी रोज़ याद न कर पाऊँ तो खुदग़रज़ ना समझलेना दोस्तों..!!

किसी रोज़ याद न कर पाऊँ तो खुदग़रज़ ना समझ
लेना दोस्तों...

दरअसल छोटी सी इस उम्र मैं परेशानियां बहुत
हैं...!!
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न कहा करो हर बार की हम छोड़ देंगे तुमको,
न हम इतने आम हैं, न ये तेरे बस की बात है…!! 

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वफ़ा का नाम सुना था पुराने लोगो से....
हमारे दौर में शायद ये हादसा हुआ नही करता..!!

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चंद रुपयों मैं बिकता हैं यहाँ “इंसान का ज़मीर” कौन कहता हैं मेरे देश मैं महंगाई बहुत हैं..!!

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मैखाने मे आऊंगा मगर पिऊंगा नही साकी;
ये शराब मेरा गम मिटाने की औकात नही रखती..!!

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तुम लौट के आने का तकल्लुफ मत करना;
हम एक मोहब्बत को दो बार नहीं करते..!!

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मोहब्बत-मोहब्बत की बस इतनी कहानी है;
इक टूटी हुई कश्ती और ठहरा हुआ पानी है;
इक फूल जो किताबों में कहीं दम तोड़ चुका है;
कुछ याद नहीं आता किसकी निशानी है..!!