उलझनों और कश्मकश में,
उम्मीद की ढाल लिए बैठा हूँ।
ए जिंदगी! तेरी हर चाल के लिए,
मैं दो चाल लिए बैठा हूँ |
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नींद आए या ना आए, चिराग बुझा दिया करो,
यूँ रात भर किसी का जलना, हमसे देखा नहीं जाता....!!!
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यहाँ हर किसी को, दरारों में झाकने की आदत है,
दरवाजे खोल दो, कोई पूछने भी नहीं आएगा....!!!!
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तुझको सोचा तो पता हो गया रुसवाई को
मैंने महफूज़ समझ रखा था तन्हाई को
जिस्म की चाह लकीरों से अदा करता है
ख़ाक समझेगा मुसव्विर तेरी अँगडाई को
अपनी दरियाई पे इतरा न बहुत ऐ दरिया
एक कतरा ही बहुत है तेरी रुसवाई को
चाहे जितना भी बिगड़ जाए ज़माने का चलन
झूठ से हारते देखा नहीं सच्चाई को
साथ मौजों के सभी हो जहाँ बहने वाले
कौन समझेगा समन्दर तेरी गहराई को..!!
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जिसने भी इस ख़बर को सुना सर पकड़ लिया,
कल एक दिये ने आंधी का कॉलर पकड़ लिया..!!
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एक आंसू भी हुकूमत के लिए खतरा है,
तुमने देखा नहीं आँखों का समंदर होना..!!