Tuesday 2 October 2012

कभी सुख का समय बीता..!!













कभी सुख का समय बीता, कभी दुख का समय गुजरा
अभी तक जैसा भी गुजरा मगर अच्छा समय गुजरा !


अभी कल ही तो बचपन था अभी कल ही जवानी थी
कहाँ लगता है इन आँखों से ही इतना समय गुजरा !


बहुत कोशिश भी की, मुट्ठी में पर कितना पकड़ पाए
हमारे सामने होकर ही यूँ सारा समय गुजरा !


झपकना पलकों का आँखों का सोना भी जरूरी है
हमेशा जागती आँखों से ही किसका समय गुजरा !


उन्हीं पेडों पे फिर से आ गए कितने नए पत्ते
उन्हीं से जैसे ही पतझार का रूठा समय गुजरा !


हमें भी उम्र की इस यात्रा के बाद लगता है
न जाने कैसे कामों में यहाँ अपना समय गुजरा..!!

अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये..!!


















अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये

जिन चिराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ़ नहीं
उन चिराग़ों को हवाओं से बचाया जाये

बाग में जाने के आदाब हुआ करते हैं
किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाये

ख़ुदकुशी करने की हिम्मत नहीं होती सब में
और कुछ दिन यूँ ही औरों को सताया जाये

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये..!!

 --निदा फ़ाज़ली

अंगार कैसे आ गए..!!














हर दिशा के हाथ में अंगार कैसे आ गए ।
बेकफ़न ये लाश के उपहार कैसे आ गए ॥

मोल मिट्टी के बिके हैं ,शीश कल बाज़ार में ।
दोस्तों के वेश में ,खरीदार कैसे आ गए ॥

सरहदों के पार था अब तक लहू अब तक क़तल
देखते ही देखते इस पार कैसे आ गए ॥


सिर उठाती आँधियाँ ,ये खेल होती हैं नहीं ।
नमन करने को इन्हें लाचार कैसे आ गए ॥

यही चले थे सोचकर कि अमन अब हो गया।
खून के बादल यहाँ इस बार कैसे आ गए ॥

जब किसी से कोई गिला रखना..!!















जब किसी से कोई गिला रखना
सामने अपने आईना रखना

यूँ उजालों से वास्ता रखना
शम्मा के पास ही हवा रखना

घर की तामीर चाहे जैसी हो
इस में रोने की जगह रखना

मस्जिदें हैं नमाज़ियों के लिये
अपने घर में कहीं ख़ुदा रखना

मिलना जुलना जहाँ ज़रूरी हो
मिलने-जुलने का हौसला रखना..!!

--निदा फ़ाज़ली