Thursday 24 October 2013

नदी समंदर होना चाहती है..!!


आहत सी सभ्यता के द्वार पे
कब तक निहारे आँगन
बंधन तोड़ जाना चाहती है

युगों का बोझ लिये बहती रही
थकने लगी है शायद
कुछ विश्राम पाना चाहती है

अथाह जल-राशि की जो स्वामिनी
क्षितिज पार होती हुई
अंतरिक्ष समाना चाहती है

ओह पायी है मधुरता कितनी
न आँसू भी धो सके
ये नमकीन होना चाहती है

बंधन में छटपटाती है बहुत
पत्थरों को तराशती
अब विस्तार पाना चाहती है

बांटती रही है जग को जीवन
भीगी-भीगी सी नदी
समंदर हो जाना चाहती है..!!

इंसान नहीं भूत परोसते हैं भोजन..!!



आपको ऐसे रेस्‍त्रां की सैर कराने जा रहे हैं, जिसमें प्रवेश करने के बाद लोग थर-थर कांपने लगते हैं। ऐसा माहौल जिसमें डर लगना तो पक्‍का है, क्‍योंकि इस रेस्‍त्रां में इंसान नहीं भूत भोजन परोसते हैं और भोजन लाशों के बीच में होता है। चौंकिये नहीं, असल में हम बात कर रहे हैं दुनिया के अजब गजब रेस्‍त्रां में शामिल स्‍पेन के ला मासिया एंकांटडा की।

इस रेस्‍त्रां का कॉनसेप्‍ट असल में इसके इतिहास से प्रेरित है। इतिहास- 17वीं सेंचुरी में जोसफ मा रिएस ने मासिया और सुरोका ने मासिया सेंटा रोज़ा बनवाया। लेकिन आगे चलकर संपत्ति पर पारिवारिक विवाद हो गया। एक दिन सुरोका और रिएस ने कार्ड उछाल कर अपनी किसमत तय की। रिएस सारी संपत्ति हार गये। उनके परिवार ने घर छोड़ दिया और परिवार ने नई संपत्ति खड़ी की। देखते ही देखते यह इमारत खंडहर में तब्‍दील हो गई।

दो सदियों तक वीरान पड़ी रही इमारत में सुरोका के वंशजों ने 1970 में एक रेस्‍त्रां बनाया। उनका परिवार  मानता था कि इस इमारत को कोई शाप लग गया है, लिहाजा वहीं से उनके दिमाग में बात आयी कि क्‍यों न रेस्‍त्रां को हॉन्‍टेड रेस्‍त्रां के रूप में चलाया जाये। बस तब से लेकर आज तक ये रेस्‍त्रां हॉन्‍टेड रेस्‍त्रां के रूप में चल रहा है।
और भी हैं अजब-गजब रेस्‍त्रां यहां पर भूतों के वेश में वेटर भोजन परोस्‍ते हैं और भोजन का समय निर्धारित है। निर्धारित समय पर जब ग्राहक पहुंचते हैं, तो उनका स्‍वागत खून से सने चाकू, तलवार या हसिये से किया जाता है। आगे बढ़ते ही पंजा, या नकली लाशें जो देखने में एकदम असली हैं, लटकी मिलती हैं। भोजन करते वक्‍त ग्राहकों के लिये एक शो का संचालन किया जाता है, जिसे देखना हर किसी के बस की बात नहीं। 

इस रेस्‍त्रां की कुछ महत्‍वपूर्ण बातें:-

 रेस्‍त्रां में तीन घंटे का भोजन
रेस्‍त्रां में एक शो तीन घंटे का होता है यानी आपका भोजन भी तीन घंटे तक चलता है। इसमें तरह-तरह के भूत-प्रेत के वेश में लोग आपका मनोरंजन करने के साथ-साथ कुछ अलग परोसने की कोशिश करते हैं, जिनसे आप निश्चित रूप से डर जायेंगे।

दिल के मरीज व प्रगनेंट महिलाएं नहीं

इस रेस्‍त्रां में दिल के मरीजों, अस्‍थमा के मरीजों और प्रेगनेंट महिलाओं को भोजन करना मना है, क्‍योंकि डर के कारण दिल व अस्‍थमा के मरीजों की तबियत बिगड़ सकती है, वहीं गर्भ के अंदर बच्‍चे पर बुरा असर पड़ सकता है। साथ ही विकलांगों का प्रवेश भी वर्जित है।

14 साल से नीचे का प्रवेश प्रतिबंधित
इस रेस्‍त्रां में 14 साल से नीचे के बच्‍चों का प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित है। ऐसा इसलिये क्‍योंकि हॉरर शो से वो डर सकते हैं।

ग्राहक भी शो का हिस्‍सा

खास बात यह  है कि इस हॉरर शो में ग्राहक महज मूक दर्शक बनकर  नहीं बैठ सकता। वो दुख भी डरावनी कहानियों का हिस्‍सा बन जाते हैं, जिस वजह से डर तो लाजमी है।

जादूगर का जादू
डराने के लिये जरूरी है, कि कुछ ऐसा हो, जो विस्‍मयकारी लगे, लिहाजा यहां जादूगर का जादू भी प्रस्‍तुत किया जाता है, जो पूरी तरह हॉन्‍टेड होता है।

प्रवेश करते ही शुरू होता है शो

इस रेस्‍त्रां में बुकिंग करते वक्‍त ही आपको समय दे दिया जाता है। खास बात यह है कि जैसे ही आप रेस्‍त्रां में प्रवेश करेंगे, वैसे ही शो शुरू हो जायेगा जो डराने के लिये काफी है। रेस्‍त्रां में मोबाइल लेजाना मना है।

रेस्‍त्रां में 60 सीटें
रेस्‍त्रां में कुल 60 सीटें हैं, लेकिन शो तभी आयोजित किया जाता है, जब कम से कम 35 लोग डिनर या लंच करने आयें। रेस्‍त्रां में प्रवेश बुकिंग के आधार पर ही दिया जाता है। रेस्‍त्रां की टेबल-चेयर व इंटीरियर इस तरह बनाया गया है, जैसे कोई भूतों का अड्डा हो।

भूतों के वेश में वेटर

यहां पर भूतों के वेश में वेटर भोजन परोस्‍ते हैं और भोजन का समय निर्धारित है। निर्धारित समय पर जब ग्राहक पहुंचते हैं, तो उनका स्‍वागत खून से सने चाकू, तलवार या हसिये से किया जाता है।


लाशों के बीच भोजन

आगे बढ़ते ही पंजा, या नकली लाशें जो देखने में एकदम असली हैं, लटकी मिलती हैं। भोजन करते वक्‍त ग्राहकों के लिये एक शो का संचालन किया जाता है, जिसे देखना हर किसी के बस की बात नहीं।

अकबर और वीरबल का मिलन..!!


अकबर को वीरबल कैसे मिले, इसके बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। लेकिन उनमें कोई भी पूर्णतः विश्वसनीय नहीं है। इस बारे में जो कथा सबसे अधिक विश्वसनीय प्रतीत होती है, वह यहाँ दे रहा हूँ।
कहा जाता है कि वीरबल आगरा में किले के बाहर पान की दुकान करते थे। उस समय उनका नाम महेश था। एक बार बादशाह अकबर का एक नौकर उनके पास आया और बोला- ‘लाला, आपके पास एक पाव चूना होगा?’ यह सुनकर वीरबल चौंक गये और पूछा- ‘क्या करोगे एक पाव चूने का? इतने चूने की जरूरत कैसे पड़ गयी तुम्हें?’


वह बोला- ‘मुझे तो कोई जरूरत नहीं है, पर बादशाह ने मँगवाया है।’
वीरबल ने पूछा- ‘बादशाह ने मँगवाया है? जरा तफसील से बताओ कि क्यों मँगवाया है?’
वह बोला- ‘यह तो पता नहीं कि क्यों मँगवाया है। पर आज मैं रोज की तरह बादशाह के लिए पान लगाकर ले गया था। उसको मुँह में रखने के बाद उन्होंने पूछा कि तुम्हारे पास एक पाव चूना होगा? मैंने कहा कि है तो नहीं, लेकिन मिल जाएगा। तो बादशाह ने हुक्म दिया कि जाकर ले आओ। बस इतनी सी बात हुई है।’
‘तो मियाँ अपने साथ अपना कफन भी लेते जाना।’
यह सुनते ही वह नौकर घबड़ा गया- ‘क्.. क्.. क्या कह रहे हो, लाला? कफन क्यों?’
‘यह चूना तुम्हें खाने का हुक्म दिया जाएगा।’
‘क्यों? मैंने क्या किया है?’
‘पान में चूना ज्यादा लग गया है। इसलिए उसकी तुर्शी से तुम्हें वाकिफ कराने की जरूरत महसूस हुई है।’
‘लेकिन इतना चूना खाने से तो मैं मर जाऊँगा।’
‘हाँ, तभी तो कह रहा हूँ कि कफन साथ लेते जाना।’
अब तो वह नौकर थर-थर काँपने लगा। रुआँसा होकर बोला- ‘लाला,जब आप इतनी बात समझ गये हो, तो बचने की कोई तरकीब भी बता दो।’
वीरबल ने कहा- ‘एक तरकीब है। बादशाह के पास जाने से पहले तुम गाय का एक सेर खालिश घी पी जाना। जब चूना खाने का हुक्म मिले, तो चुपचाप खा जाना और घर जाकर सो जाना। तुम्हें कुछ दस्त-वस्त लगेंगे, लेकिन जान बच जायेगी।’

वह शुक्रिया करके चला गया।
घी पीकर और चूना लेकर वह बादशाह के पास पहुँचा- ‘हुजूर, चूना हाजिर है।’
अकबर ने कहा- ‘ले आये चूना? इसे यहीं खा जाओ।’
‘जो हुक्म हुजूर’ कहकर वह चूना खा गया। अकबर ने हुक्म दिया- ‘अब जाओ।’ कोर्निश करके वह चला गया।
अगले दिन वह फिर पान लेकर हाजिर हुआ। उसे देखकर अकबर को आश्चर्य हुआ- ‘क्या तुम मरे नहीं?’
‘आपके फजल से जिन्दा हूँ, हुजूर!’
‘तुम बच कैसे गये? मैंने तो तुम्हें एक पाव चूना अपने सामने खिलाया था।’
‘हुजूर, आपके पास आने से पहले मैंने गाय का एक सेर घी पी लिया था।’
‘यह तरकीब तुम्हें किसने बतायी? और तुम्हें कैसे पता था कि मैं चूना खाने का हुक्म दूँगा?’
‘मुझे नहीं पता था, लेकिन पान वाला लाला समझ गया था। उसी ने मुझे यह तरकीब बतायी थी, हुजूर।’
अब तो अकबर चौंका। बोला- ‘पूरी बात बताओ कि तुम दोनों के बीच क्या बात हुई?’
तब उस नौकर ने वह बातचीत कह सुनायी जो उसके और वीरबल के बीच हुई थी। यह सुनकर अकबर के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। बोला- ‘यह पानवाला लाला तो बहुत बुद्धिमान मालूम होता है। तुम उसको हमारे पास लेकर आना। हम उसे अपना दोस्त बनायेंगे।’
तब वह नौकर वीरबल को लेकर अकबर के पास गया और इस प्रकार अकबर और वीरबल में मित्रता हुई।

'मौत का त्रिकोण'



संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिण पूर्वी अटलांटिक महासागर के अक्षांश 25 डिग्री से 45 डिग्री उत्तर तथा देशांतर 55 से 85 डिग्री के बीच फैले 39,00,000 वर्ग किमी के बीच फैली जगह, जोकि एक काल्पनिक त्रिकोण जैसी दिखती है, बरमूडा त्रिकोण अथवा बरमूडा त्रिभुज के नाम से जानी जाती है।

इस त्रिकोण के तीन कोने बरमूडा, मियामी तथा सेन जआनार, पुतौरिका को स्पर्श करते हैं। वर्ष 1854 से इस क्षेत्र में कुछ ऐसी घटनाऍं/दुर्घटनाऍं घटित होती रही हैं कि इसे 'मौत के त्रिकोण' के नाम से जाना जाता है।

बरमूडा त्रिकोण पहली बार विश्व स्तर पर उस समय चर्चा में आया, जब 1964 में आरगोसी नामक पत्रिका में इस पर लेख प्रकाशित हुआ। इस लेख को विसेंट एच गोडिस ने लिखा था। इसके बाद से लगातार सम्पूर्ण विश्व में इस पर इतना कुछ लिखा गया कि 1973 में एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में भी इसे जगह मिल गई।

बरमूडा त्रिकोण की सबसे विख्यात दुर्घटना 5 सितम्बर 1945 में हुई, जिसमें पॉंच तारपीडो यान नष्ट हो गये थे। उन उड़ानों का नेतृत्व कर रहे चालक ने दुर्घटना होने के पहले अपना संदेश देते हुए कहा था- हम नहीं जानते कि पश्चिम किस दिशा में है। सब कुछ गलत हो गया है। हमें कोई भी दिशा समझ में नहीं आ रही है। हमें अपने अड्डे से 225 मील उत्तर पूर्व में होना चाहिए, लेकिन ऐसा लगता है कि !


और उसके बाद आवाज आनी बंद हो गई। उन यानों का पता लगाने के लिए तुरंत ही मैरिनर फ्लाइंग बोट भेजी गई थी, जिसमें 13 लाग सवार थे। लेकिन वह बोट भी कहँ गई, इसका भी पता नहीं चला।

इस तरह की तमाम घटनाएँ उस क्षेत्र में होने का दावा समय समय पर किया जाता रहा है। लेकिन यह सब किन कारणों से हो रहा है, यह कोई भी बताने में अस्मर्थ रहा है। इस सम्बंध में चार्ल्स बर्लिट्ज ने 1974 में अपनी एक पुस्तक के द्वारा इस रहस्य की पर्तों को खोजने का दावा किया था। उसने अपनी पुस्तक 'दा बरमूडा ट्राइएंगिल मिस्ट्री साल्व्ड' में लिखा था कि यह घटना जैसी बताई जाती है, वैसी है नही। बॉम्बर जहाजों के पायलट अनुभवी नहीं थे। चार्ल्स के अनुसार वे सभी चालक उस क्षेत्र से पूरी तरह से अनभिज्ञ थे और सम्भवत: उनके दिशा सूचक यंत्र में खराबी होने के कारण खराब मौसम में एक दूसरे से टकरा कर नष्ट हो गये।


बहरहाल समय-समय पर इस तरह के ताम दावे इस त्रिकोण के रहस्य को सुलझाने के किए जाते रहे हैं। कुछ रसायन शास्त्रियों क मत है कि उस क्षेत्र में 'मीथेन हाइड्रेट' नामक रसायन इन दुर्घटनाओं का कारण है। समुद्र में बनने वाला यह हाइड्राइट जब अचानक ही फटता है, तो अपने आसपास के सभी जहाजों को चपेट में ले सकता है। यदि इसका क्षेत्रफल काफी बड़ा हो, तो यह बड़े से बड़े जहाज को डुबो भी सकता है।

वैज्ञानिकों का मत है कि हाइड्राइट के विस्फोट के कारण डूबा हुआ जहाज जब समुद्र की अतल गहराई में समा जाता है, तो वहाँ पर बनने वाले हाइड्राइट की तलछट के नीचे दबकर गायब हो जाता है। यही कारण है कि इस तरह से गायब हुए जहाजों का बाद में कोई पता-निशां नहीं मिलता। इस क्षेत्र में होने वाले वायुयानों की दुर्घटना के सम्बंध में वैज्ञानिकों का मत है कि इसी प्रकार जब मीथेन बड़ी मात्रा में वायुमण्डल में फैलती है, तो उसके क्षेत्र में आने वाले यान का मीथेन की सांद्रता के कारण इंजन में ऑक्सीजन का अभाव हो जाने से वह बंद हो जाता है। ऐसी दशा में विमान पर चालक का नियंत्रण समाप्त हो जाता है और वह समुद्र के पेट में समा जाता है। अमेरिकी भौगोलिक सवेक्षण के अनुसार बरमूडा की समुद्र तलहटी में मीथेन का अकूत भण्डार भरा हुआ है। यही वजह है कि वहाँ पर जब-तब इस तरह की दुर्घटनाएँ होती रहती हैं।

बहरहाल इस तर्क से भी सभी वैज्ञानिक सहमत नहीं हैं। यही कारण है कि बरमूडा त्रिकोण अभी भी एक अनसुलझा रहस्य ही बना हुआ है। इस रहस्य से कभी पूरी तरह से पर्दा हटेगा, यह कहना मुश्किल है।


बरमूडा त्रिकोण क्षेत्र में जमीन पर हुई घटनाएं:-


1. सन् 1969 में बिमिनी, बाहामास स्थित ग्रेट आइजैक लाइटहाउस पर कार्यरत दो कर्मचारी अचानक लापता हो गये और फिर कभी नहीं मिले।

 बरमूडा त्रिकोण की समुद्री घटनाएं:-
  1. 4 मार्च 1918: पानी में चलनेवाला अमेरिकी जहाज साइक्लॉप्स, 309 लोगों के साथ गायब हो गया।

  2. 1 दिसंबर 1925: चाल्र्सटन, दक्षिण कैरोलीना से हवाना, क्यूबा के लिए चलने के बाद पानी के जहाज सोटोपैक्सी ने रेडियो सिगल पर संदेश जारी किया कि जहाज डूब रहा है। उसके बाद जहाज की कोई खबर नहीं मिली।

  3. 23 नवंबर 1941: अमेरिकी जहाज प्रोटिअस, 58 लोगों के साथ वर्जिन आइलैंड के लिए चला. इस पर बॉक्साइट लदा हुआ था। दो दिनों बाद इसका कोई पता नहीं चला। इसके अगले महीने उसी कंपनी का दूसरा जहाज नेरेअस 61 लोगों के साथ उसी क्षेत्र के आसपास से लापता हो गया।

  4. 2 फरवरी 1963: सल्फर क्वीन नामक जहाज 15 हजार दो सौ 60 टन सल्फर के साथ ब्यूमोंट, टेक्सास के लिए चला। इस पर चालक दल के 39 सदस्यसवार थे। 4 फरवरी को प्राप्त रेडियो सिग्नलों के अनुसार, यह तेज समुद्री आंधी में फंस गया और इसके दो दिन बाद इसकी कोई खोज-खबर नहीं मिली। 
बरमूडा त्रिकोण की वायुयान दुर्घटनाएं:-
  1. 5 दिसंबर 1945: फ्लाइट 19 में सवार 14 वायु सैनिकों का एक दल लापता हुआ, उसी दिन उसकी तलाश में 13 सदस्यों के साथ निकला पीबीएम मरीनर भी लापता हुआ।

  2. 30 जनवरी 1948: स्टार टाइगर नामक हवाई जहाज चालक दल के छह सदस्यों और 25 यात्रियों के साथ लापता हो गया।

  3. 28 दिसंबर 1948: डगलस डीसी-3 हवाई जहाज चालक दल के तीन सदस्यों और 36 यात्रियों के साथ लापता हुआ।

  4. 17 जनवरी 1949: स्टार एरियल वायुयान चालक दल के सात सदस्यों और 13 यात्रियों के साथ लापता हो गया।

Monday 21 October 2013

आर्य..!!



हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी

भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां
फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां
संपूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है
उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है

यह पुण्य भूमि प्रसिद्घ है, इसके निवासी आर्य हैं
विद्या कला कौशल्य सबके, जो प्रथम आचार्य हैं
संतान उनकी आज यद्यपि, हम अधोगति में पड़े
पर चिन्ह उनकी उच्चता के, आज भी कुछ हैं खड़े

वे आर्य ही थे जो कभी, अपने लिये जीते न थे
वे स्वार्थ रत हो मोह की, मदिरा कभी पीते न थे
वे मंदिनी तल में, सुकृति के बीज बोते थे सदा
परदुःख देख दयालुता से, द्रवित होते थे सदा

संसार के उपकार हित, जब जन्म लेते थे सभी
निश्चेष्ट हो कर किस तरह से, बैठ सकते थे कभी
फैला यहीं से ज्ञान का, आलोक सब संसार में
जागी यहीं थी, जग रही जो ज्योति अब संसार में

वे मोह बंधन मुक्त थे, स्वच्छंद थे स्वाधीन थे
सम्पूर्ण सुख संयुक्त थे, वे शांति शिखरासीन थे
मन से, वचन से, कर्म से, वे प्रभु भजन में लीन थे
विख्यात ब्रह्मानंद नद के, वे मनोहर मीन थे..!!

तीन संत..!!



यह लेव तॉल्स्तॉय की बहुत प्रसिद्द कहानी है. रूस के ऑर्थोडॉक्स चर्च के आर्चबिशप को यह पता चला कि उसके नियमित प्रवचन में भाग लेने वाले बहुत से लोग एक झील के पास जाने लगे हैं. उस झील के बीच में छोटा सा एक टापू था जहाँ एक पेड़ के नीचे तीन बूढ़े रहते थे. गाँव वालों का यह कहना था कि वे तीनों संत हैं. आर्चबिशप को यह बात बहुत नागवार गुज़री क्योंकि ईसाई धर्म में संत केवल उन्हें ही माना जाता है जिन्हें वेटिकन द्वारा विधिवत संत घोषित किया गया हो.

आर्चबिशप क्रोधित हो गया – “वे तीनों संत कैसे हो सकते हैं? मैंने सालों से किसी को भी संतत्व की पदवी के लिए अनुशंसित नहीं किया है! वे कौन हैं और कहाँ से आये हैं?”. लेकिन आम लोग उन तीनों के दर्शनों के लिए जाते रहे और चर्च में आनेवालों की तादाद कम होती गयी.

अंततः आर्चबिशप ने यह तय किया कि वह उन तीनों को देखने के लिए जाएगा. वह नाव में बैठकर टापू की ओर गया. वे तीनों वहां मिल गए. वे बेहद साधारण अनपढ़ और निष्कपट देहातियों जैसे थे. दूसरी ओर, आर्चबिशप बहुत शक्तिशाली व्यक्ति था. रूस के ज़ार के बाद उस क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण आदमी था वह. उन तीनों को देखकर वह खीझ उठा – “तुमें संत किसने बनाया?” – उसने पूछा. वे तीनों एक दूसरे का मुंह ताकने लगे. उनमें से एक ने कहा – “किसी ने नहीं. हम लोग खुद को संत नहीं मानते. हम तो केवल साधारण मनुष्य हैं”.

“तो फिर तुम लोगों को देखने के लिए इतने सारे लोग क्यों आ रहे हैं?”

वे बोले – “यह तो आप उन्हीं से पूछिए.”

“क्या तुम लोगों को चर्च की आधिकारिक प्रार्थना आती है?” – आर्चबिशप ने पूछा.

“नहीं. हम तो अनपढ़ हैं और वह प्रार्थना बहुत लंबी है. हम उसे याद नहीं कर सके.”

“तो फिर तुम लोग कौन सी प्रार्थना पढ़ते हो?”

उन तीनों ने एक-दूसरे की ओर देखा. “तुम बता दो” – एक ने कहा.

“तुम ही बता दो ना” – वे आपस में कहते रहे.

आर्चबिशप यह सब देखसुनकर अपना आप खो बैठा. “इन लोगों को प्रार्थना करना भी नहीं आता! कैसे संत हैं ये?” – उसने मन में सोचा. वह बोला – “तुम लोगों में से कोई भी बता सकता है. जल्दी बताओ!”

वे बोले – “दरअसल हम आपके सामने बहुत ही साधारण व्यक्ति हैं. हम लोगों ने खुद ही एक प्रार्थना बनाई है पर हमें यह पता नहीं था कि इस प्रार्थना को चर्च की मंजूरी मिलना ज़रूरी है. हमारी प्रार्थना बहुत साधारण है. हमें माफ़ कर दीजिये कि हम आपकी मंजूरी नहीं ले पाए. हम इतने संकोची हैं कि हम आ ही न सके.”

“हमारी प्रार्थना है – ईश्वर तीन है और हम भी तीन हैं, इसलिए हम प्रार्थना करते हैं – ‘तुम तीन हो और हम तीन हैं, हम पर दया करो’ – यही हमारी प्रार्थना है.”

आर्चबिशप बहुत क्रोधित हो गया – “ये प्रार्थना नहीं है! मैंने ऐसी प्रार्थना कभी नहीं सुनी!” – वह ज़ोरों से हंसने लगा.

वे बोले – “आप हमें सच्ची प्रार्थना करना सिखा दें. हम तो अब तक यही समझते थे कि हमारी प्रार्थना में कोई कमी नहीं है. ‘ईश्वर तीन है, और हम तीन हैं’, और भला क्या चाहिए? बस ईश्वर की कृपा ही तो चाहिए?

उनके अनुरोध पर आर्चबिशप ने उन्हें चर्च की आधिकारिक प्रार्थना बताई और उसे पढ़ने का तरीका भी बताया. प्रार्थना काफी लंबी थी और उसके ख़तम होते-होते उनमें से एक ने कहा – “हम शुरू का भाग भूल गए हैं”. फिर आर्चबिशप ने उन्हें दोबारा बताया. फिर वे आख़िरी का भाग भूल गए…

आर्चबिशप बहुत झुंझला गया और बोला – “तुम लोग किस तरह के आदमी हो!? तुम एक छोटी सी प्रार्थना भी याद नहीं कर सकते?”

वे बोले – “माफ़ करें लेकिन हम लोग अनपढ़ हैं और हमारे लिए इसे याद करना थोडा मुश्किल है, इसमें बहुत बड़े-बड़े शब्द हैं… कृपया थोड़ा धीरज रखें. यदि आप इसे दो-तीन बार सुना देंगे तो शायद हम इसे याद कर लेंगे”. आर्चबिशप ने उन्हें तीन बार प्रार्थना सुना दी. वे बोले – “ठीक है, अबसे हम यही प्रार्थना करेंगे, हांलाकि हो सकता है कि हम इसका कुछ हिस्सा कहना भूल जाएँ पर हम पूरी कोशिश करेंगे”.

आर्चबिशप संतुष्ट था कि अब वह लोगों को जाकर बताएगा कि उसका पाला कैसे बेवकूफों से पड़ा था. उसने मन में सोचा – ‘अब लोगों को जाकर बताऊँगा कि वे जिन्हें संत कहते हैं उन्हें तो धर्म का क-ख-ग भी नहीं पता. और वे ऐसे जाहिलों के दर्शन करने जाते हैं!’. यही सोचते हुए वह नाव में जाकर बैठ गया. नाव चलने लगी और वह अभी झील में आधे रास्ते पर ही था कि उसे पीछे से उन तीनों की पुकार सुनाई दी. उसने मुड़कर देखा, वे तीनों पानी पर भागते हुए नाव की तरफ आ रहे थे! उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ! वे लोग पानी पर भागते हुए आये और नाव के पास पानी में खड़े हुए बोले – “माफ़ कीजिये, हमने आपको कष्ट दिया, कृपया चर्च की प्रार्थना एक बार और दोहरा दें, हम कुछ भूल गए हैं”.

आर्चबिशप ने कहा – “तुम लोग अपनी प्रार्थना ही पढो. मैंने तुम्हें जो कुछ भी बताया उसपर ध्यान मत दो. मुझे माफ़ कर दो, मैं बहुत दंभी हूँ. मैं तुम्हारी सरलता और पवित्रता को छू भी नहीं सकता. जाओ, लौट जाओ.”

लेकिन वे अड़े रहे – “नहीं, ऐसा मत कहिये, आप इतनी दूर से हमारे लिए आये… बस एक बार और दोहरा दें, हम लोग भूलने लगे हैं पर इस बार कोशिश करेंगे कि इसे अच्छे से याद कर लें.”

लेकिन आर्चबिशप ने कहा – “नहीं भाइयों, मैं खुद सारी ज़िंदगी अपनी प्रार्थना को पढ़ता रहा पर ईश्वर ने उसे कभी नहीं सुना. हम तो बाइबिल में ही यह पढ़ते थे कि ईसा मसीह पानी पर चल सकते थे पर हम भी उसपर शंका करते रहे. आज तुम्हें पानी पर चलते देखकर मुझे अब ईसा मसीह पर विश्वास हो चला है. तुम लोग लौट जाओ. तुम्हारी प्रार्थना संपूर्ण है. तुम्हें कुछ भी सीखने की ज़रुरत नहीं है”..!!

Sunday 6 October 2013

Muhajir Nama Collection 5



Muhajir hain magar ham ek duniya chor aaye hain,
tmhare paas jitna ha ham utna chor aye hain..!!

Sada-e-reahal ne roka magar ruk hi nai paye
yahan aane ki jaldi me sipara chor aaye hain..!!

farishte do muqarrar the aamaal likhne ko
hame lagta h jaise ek farishta chor aaye hain..!!

milawat k zamane me zyada yaad aata h
ki apni bhains apna dhoodh wala chor aaye hain..!!

hawas hi hamko layi h hawas k sath rehna h
virasat me mila wo faqr-o-faqa chor aaye hain..!!

wo hijrat thi ki mayyat thi tamasha ban gye the ham
ghadi rukhsat ki aayi sab ko gunga chor aaye hain..!!

galay fehmi me uljha reh gya wo phool sa chehra,
ham uski jheel si aankhon ko thehra chor aaye hain..!!

nai duniya ki khatir apni duniya chor di hamne,
sahare ki tanman'na me sahara chor aaye hain..!!

Muhajir hain magar ham ek duniya chor aaye hain,
tmhare paas jitna ha ham utna chor aye hain..!!