MOHABBAT KI KASAM HUM, WAFA KAR RAHE HAIN UNKI NAZAR MEIN SHAYAD ,KHATA KAR RAHE HAIN RUTHE RUTHE SE HAIN WO MANAYEIN BHI TO KAISE KHABAR HI NAHIN KYUN RUTHE HAIN WO HUMSE MOHABBAT KI KASAM HUM, WAFA KAR RAHE HAIN UNKI NAZAR MEIN SHAYAD ,KHATA KAR RAHE HAIN PAL PAL MEIN EK PAL ISTARAH BHI AAYA UNKE HI FIKR MEIN JEE MERA GHABRAYA UNKE LIYE HAMESHA KHUDA SE,DUA KAR RAHE HAIN MOHABBAT KI KASAM HUM, WAFA KAR RAHE HAIN UNKI NAZAR MEIN SHAYAD ,KHATA KAR RAHE HAIN JAB BHI KABHI KAHIN UNSE MULAKAAT HUI HAAN SIRF SHIKWE SHIKAYATON KI BAAT HUI KHAMOKHAN KYUN WO HUMSE,GILA KAR RAHE HAIN MOHABBAT KI KASAM HUM, WAFA KAR RAHE HAIN UNKI NAZAR MEIN SHAYAD ,KHATA KAR RAHE HAIN DEKHTE HI WO HUMSE NAZREIN CHURATE HAIN MERE KAREEB AANE PAR DOOR CHALEJATE HAIN BE WAZAH WO MERE DIL PE,ZAFA KAR RAHE HAIN MOHABBAT KI KASAM HUM, WAFA KAR RAHE HAIN UNKI NAZAR MEIN SHAYAD ,KHATA KAR RAHE HAIN..!! ============================================ Aahat Aahat intezaar kar ke dekhna kabhi kissi say pyar kar ke dekhna Toot jatey hain khoon ke rishtay bhi Ghaltiyaan do-chaar kar ke dekhna Agar zindagi ka falsaffa samajhna ho barish me kachchi dewaar kharhi kr k dekhna Kaee janam beet jayein gay janaa kabhi meri mohabbatein shumaar kr k dekhna..!!
"वक्त बड़ा आजीब होता है इसके साथ चलो तो किस्मत बदल देता है, न चलो तो किस्मत को ही बदल देता है..!!
Monday 26 September 2011
MOHABBAT KI KASAM HUM, WAFA KAR RAHE HAIN..
Saturday 17 September 2011
सोने का शहर
रावण की सोने की लंका के बारे में तमाम कहानियां सुनी होगी, वहीं पूरी दुनिया में एक ऐसी मिथकीय जगह की तमाम कहानियां फैली हैं, जहां चारों आ॓र सोना ही सोना बिखरा है। इस जगह को नाम दिया गया है ‘अल डोराडो’ स्पेनी भाषा में सोने से बना या मढ़ा हुआ। सैकड़ों वर्षों से लोग इस जगह की खोज में लगे रहे हैं। कुछ ने तो अपनी पूरी जिंदगी इस जगह को खोजने में लगा दी। कहते हैं अल डोराडो की कथा उस कहानी से शुरू हुई जिसमें कहा गया था कि एक दक्षिण अमेरिकी कबीले का मुखिया स्वयं को सोने की धूल से लपेट लेता था, उसे देख ऐसा प्रतीत होता था मानो वे सोने का ही बना हो। १५३० के आसपास आज के कोलंबिया में स्पेनी आक्रमणकारी गोन्जालो जिमेनेज डे केसाडा ने १५३७ में म्युस्का (आज के कोलंबिया का कनडीनामार्का तथा बोयाका पहाड़ी क्षेत्र) में यहां की पुरानी परंपरा देखी। इसी परंपरा को देखने के बाद अल डोराडो (सुनहरा आदमी) अल इण्डियो डोराडो (दी गोल्डेन इंडियन), अल रे डोराडो (दी गोल्डेन किंग) आदि मिथक तेजी से सामने आये व अल डोराडो गोल्डेन किंग का राज्य था फिर शहर के रूप में जाना जाने लगा। इसी मशहूर सोने के शहर की तलाश में १५४१ में स्पेनी खोजी फ्रांसिस्को आ॓रीलाना तथा गोन्जालो पिजारे दक्षिण अमेरिका की आ॓र चल पड़े।
एक अन्य स्पेनी जुआन रोड्रिगे फ्रेयाइल ने एक लेख ‘अल कारनेरो’ में लिखा है कि म्युस्किा का मुख्य पादरी या सम्राट को एक धार्मिक अनुष्ठान के चलते सोने की धूल से पूरी तरह ढक दिया जाता था यानी उसके पूरे शरीर में सोने की धूल मल दी जाती थी व यह धार्मिक अनुष्ठान गुआटाविटा झील (आज के शहर बोगोटा के निकट) के पास हुआ था। 1636 में जुआन रोड्रिगे फ्रेयाइल ने अपने गवर्नर दोस्त डॉन जुआन को पत्र में लिखा ‘नये राजा के राज्याभिषेक के मौके पर यह अनुष्ठान हुआ। गद्दी पर बैठने से पहले राजा ने कुछ समय एकांत में गुफा में बिताया जहां उसके आसपास स्रियां भी नहीं थी, न उसको नमक का प्रयोग करना था न ही मिर्च आदि का न ही सूर्य की रोशनी में गुफा से बाहर आना था, पहले उसे विशाल गुआटाविटा झील तक ले जाया गया ताकि वे उस शैतान को भेट चढ़ा सके व बलि दे सके जिसे वह अपना देवता या भगवान मानते हैं। अनुष्ठान के दौरान सेवकों ने जलबेंत (सरपत) से नौका तैयार की, जिसे कीमती व सुंदर चीजों से सजाया गया। इसमें अंगीठी भी रखी गयी व इसमें खुशबूदार धूपबत्ती जला दी गयी। झील काफी बड़ी व गहरी थी व इसमें विशाल जहाज भी तैर सकता था। तट पर भी कई अंगीठियां जलायी गयी ताकि धुएं से दिन की रोशनी छुप जाये। इसके बाद राजा के कपड़े उतार उसके शरीर पर कोई चिपचिपा पदार्थ लगाया गया फिर शरीर पर सोने का चूर्ण लगाया गया जिससे राजा का पूरा शरीर ढक गया। इसके उपरान्त राजा को नाव में बिठाया गया व राजा के पावों के पास सोने व पन्नों के ढेर रखे गये ताकि वह इन्हें अपने देवता को चढ़ा सके। राजा के साथ नाव में उसके चार प्रमुख मंत्री भी थे जो परो, मुकुट, कड़ों व हारों से लदे थे। यह सभी आभूषण सोने के बने थे। यह चारों भी नग्न थे व जैसे ही नाव झील के बीच में पहुंची सभी ने स्वर्ण को झील में फेंक दिया। फिर नाव तट तक आयी और ढोल, नगाड़े बजने लगे व इसी के साथ इन लोगों को नया राजा मिल गया।
ऐसा माना जाता है कि म्यूसिका में झील के आसपास कई कबीले ऐसे अनुष्ठान करते होंगे। म्यूसिका व इसके जैसे अन्य शहरों व प्रांतों के बारे में जब स्पेनी आक्रमणकारियों ने सुना तो वे हजारों मील की समुद्री यात्रा कर यहां आ धमके। यहां उन्हें राजा व अन्य रईसों के पास से काफी सोना वगैरह तो मिला पर न उन्हें सोने से बने ऐसे शहर दिखे जहां मकान ही सोने से बने हों न ही ऐसी सोने की खदानें जहां सोना भरा हो, क्योंकि इन प्रांतों में सोना व्यापार से कमाया गया था। इसके बाद स्पेनियों का विश्वास अल डोराडो पर एक बार फिर से जम गया क्योंकि अल डोराडो की कहानियां उन लोगों से सुनने लगे, जिन्हें इन्होंने बंदी बनाया था। 1580 के आसपास तो स्पेनियों ने सोना पाने की चाह में पूरी झील का पानी पहाड़ी को काटकर दूसरी आ॓र निकाल देने की भी सोची। इस प्रयास के चक्कर में पहाड़ी का काटा गया हिस्सा आज भी देखा जा सकता है। जल्द ही अल डोराडो के मिथक में तमाम अन्य किस्से भी जुड़े व कई सौ वर्षों तक लोग यह मानते रहे कि एक ऐसा शहर है, जहां हजारों हजार टन सोना है। अल डोराडो की खोज में सबसे प्रसिद्ध नाम है, फ्रांसिस्को डी आ॓रीलाना तथा गोन्जालो पिजारो (1541) का जो सोने के लालच में दक्षिण अमेरिका आए। अन्य मशहूर लोग जो सोना पाने की चाह में यहां पहुंचे वे थे फिलिप वॉन हट्टन (1541-45) जो वेनेजुएला पहुंचा तथा गोन्जालो जिमेनेज डी केसाडा जो 1549 में आया। सर वाल्टर रेले, जिन्होंने 1595 में पुन: खोज शुरू की, ने अल डोराडो को ऐसा शहर बताया है जो गुईआना में आ॓रीनोको तक फैला था। इस शहर को अंग्रेजों द्वारा बनाये नक्शों में भी दिखाया जाने लगा। बाद में इन्हें मिथकीय मानकर इनका नामोनिशान नक्शे से मिटा दिया गया। हद तो यह है कि एक सैनिक ने यह बात तक उड़ा दी कि 1531 में जहाज के डूबने के बाद उसे अलडोराडो नाम के शहर के लोगों ने ही बचाया और इस शहर में रखा भी।
आज अल डोराडो उस शहर को कह देते हैं जहां पर काफी सम्पन्नता है। मशहूर कवि मिल्टन ने ‘पेराडाइज लास्ट’ में इसका जिक्र किया है। आज ‘होली ग्रेल’ (जीसस का पवित्र प्याला), पारस पत्थर आदि की तरह अल डोराडो भी किस्सों का हिस्सा भर रह गया है क्योंकि लाखों प्रयास के बाद भी ऐसा कोई शहर नहीं मिलता जहां चारों आ॓र हर चीज सोने की बनी हो।
सिंकदर का मकबरा..!!
जिस तरह से आज तक यह पता नहीं चल पाया कि आखिर सिंकदर महान की मृत्यु इतनी छोटी उम्र में कैसे हो गयी थी, ठीक वैसे ही आज तक सिकंदर के मकबरे का भी पता नहीं चल पाया है। हद तो यह है कि सिकंदर की मृत्यु को लेकर तथ्य और मिथक आपस में मिल गए हैं। इस तरह के मिथक पहले यूनान व रोमन काल में गढ़े गए फिर इनमें ईसाई धर्म के आने के साथ व बाद में अरबों द्वारा तमाम जगहों पर हमला कर उस जगह को जीतने के साथ अन्य किस्से कहानियां भी सिकंदर की मृत्यु व उसके मकबरे के साथ जुड़ती रही।
सिकंदर के अंतिम संस्कार से जुड़ी हर चीज आज विवादों में घिरी है। इतिहासकार डायोडोरस सिकुलस के अनुसार सिकंदर की मृत्यु के बाद उसके शरीर पर लेप लगा, उसे संरक्षित किया गया व दो वर्ष पश्चात अंतिम यात्रा मिस्र की आ॓र चल पड़ी। फिलिप अरहाइडियस जो फिलिप द्वितीय का मंदबुद्धि पुत्र था व जिसे मक्दूनिया की सेना ने सिकंदर का उत्तराधिकारी चुना था पर ही यात्रा व अंतिम संस्कार का पूरा जिम्मा डाला गया। तो क्या सीनाह का नखलिस्तान ही सिकंदर का अंतिम विश्राम स्थल था? यही वह स्थान था, जहां कुछ वर्ष पूर्व यह घोषणा की गयी थी कि सिकंदर देवताओं का पुत्र है। हो सकता है कि टोलमी लेगास (सन 337-383) जो सिकंदर के बाद मिस्र का शासक बना और जो सिकंदर का सेनापति था, ने ही यह चाहा कि सिकंदर को सिकंदरिया (मिस्र का एक नगर) में ही दफनाया जाए क्योंकि सिकंदर के पसंदीदा भविष्यवक्ता आरिसटेन्हर ने कहा था कि जिस देश में भी सिकंदर का शव दफनाया जाएगा वह शहर या देश दुनिया का सबसे सम्पन्न देश बनेगा।
यह भी कहा जाता है कि जब शव यात्रा सीरिया पहुंची तब परडिकास ने सेना भेज शवयात्रा का मुख्य मक्दूनिया के शहर आईगई की आ॓र मोड़ दिया। यहां पर युद्ध भी हुआ व यह संभव है कि 1886 में सिडान नाम के स्थान पर सफेद संगमरमर का ताबूत (सारकोफेगस) इसी युद्ध में मारे गये किसी योद्धा का रहा होगा। इस ताबूत में शायद टोलमोन का शव रखा गया होगा, जिसे परडिकास ने भेजी गयी सेना का सेनापति बनाया था पर सिकंदर के शव को कब्जे में करने के लिए हुए युद्ध में वह मारा गया। आज इस ताबूत को तुर्की की राजधानी के संग्रहालय में देखा जा सकता है। डायोडोरस के अनुसार शव जिस गाड़ी में रखा था, उसे हाथों से खींचकर मेम्फिस होते हुए सिकंदरिया लाया गया। 18वीं शताब्दी डायोडोरस के इसी वृतांत को पढ़कर एक फ्रांसीसी चित्रकार कोम्प्ले के केल्यू ने एक चित्र भी तैयार किया था। आने वाली पीढ़ियों के लिए सिंकदर की मृत्यु व उसका मकबरा दोनों ही मिथक बन गये व सिकंदर से जुड़ी यह बातें उन देशों तक भी पहुंची जहां वो कभी नहीं गया था।
स्ट्रावो, प्लूटार्क व पोसनियस जैसे प्राचीन लेखकों के अनुसार सिकंदरिया में ही सिकंदर का शव एक मकबरे, जिसे सोमा या सीमा कहा जाता था, में दफनाया गया। यह भी माना जाता है कि सिकंदर का ताबूत सोने का बना होगा व मकबरा भी काफी बड़ा तथा सुंदर रहा होगा। क्या सोमा या सीमा को सिकंदरिया के नक्शे पर देखा जा सकता है ? कुछ पुरातत्वविदों के अनुसार होरिया तथा नवी डेनियल सड़कें जहां एक दूसरे को काटती हैं, वहीं पर सोमा या सीमा है। वैसे यह भी सत्य है कि टोल्मी तथा रोमनकालीन सिकंदरिया की फोटोग्राफी (स्थलाकृति) के बारे में आज भी ज्यादा पता नहीं है। उन्नीसवीं शताब्दी में आधुनिक सिकंदरिया शहर को बसाया गया व प्राचीन शहर इसी आधुनिक शहर के नीचे दफन है। 1865 तक जब महमूद बे अल फलाकी को खेदाइल इस्माइल ने प्राचीन शहर का नक्शा तैयार करने को कहा उस समय तक यहां पर ठीक ठाक व पूरी तरह विश्वसनीय पुरातात्विक खुदाई तक नहीं की गयी थी। 1866 में नक्शा तैयार हो गया व इसमें विशाल खंडहरों को भी दर्शाया गया था पर 1882 के बाद जब यहां शहरीकरण ने जोर पकड़ा तो यह खंडहर भी समाप्त हो गए।
बाद में पुरातत्वविदों ने जो खुदाई की उसमें प्राचीन सड़कें व इमारतों के अवशेष नजर आये। 1960 में पुरातत्वविदों ने कोम अल डिक नाम के टीले के आसपास खुदाई शुरू की व उन्हें यहां यूनानी तथा रोमन घर तो मिले ही पूर्व में रोमन थियेटर भी मिला। यहां कई स्नानघर, नालियां, दो दफनाएं जाने के स्थल, प्राचीन इस्लामी घर भी नजर आये। महमूद बे अल फलाकी ने सिकंदर के मकबरे को शहर (सिकंदरिया) के मध्य में बताया था यानी वाया केनोपिका व आर-5 नाम के प्राचीन सड़कें जहां एक दूसरे को काटती थीं वहां पर। यह जगह नबी डेनियल के पूजास्थल के पास थी। यह जरूर था कि इस जगह की गयी खुदाई में किसी प्रकार का कोई मकबरा नहीं मिला।
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पुरातत्वविद शलाईमॉन ने नबी डेनियल के पूजास्थल पर खुदाई की इजाजत मांगी और रामलेह के पास खुदाई में उन्हें टोलमी राजवंश का एक दफन स्थल मिला। शलाईमान का मानना था कि सोमा नबी डेनियल पूजास्थल के पास ही हो सकता है पर शलाईमान को कभी भी खुदाई की इजाजत नहीं मिली। बीसवीं शताब्दी तक तमाम पुरातत्वविद यहां के आसपास खुदाई करते रहे। 1953 में जब मिस्र के राजवंश का सफाया हो गया तब 1960 में पोलैण्ड के पुरातत्वविदों ने यहां खुदाई की। यहां अरब कालीन तमाम कब्रें, कई इमारतें व रोमन स्नानघर मिले पर सिकंदर का मकबरा नहीं मिला। रोमन थियेटर के पास सिकंदर का संगमरमर से बना चेहरा मिला।
आज भी यह पता नहीं चल पाया है कि आखिर सिकंदर को कहां दफनाया (या जलाया) गया था। 11 जून सन 323 ई.पू. को दोपहर बाद सिकंदर का देहान्त हो गया था पर करीब सवा दो हजार साल बीत जाने के बाद भी यह पता नहीं चल पाया है कि आखिर वह कहां दफनाया गया था हालांकि खोज लगातार जारी है, हो सकता है मकबरा कुछ समय बाद सामने आये।
हो गई है पीर
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
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जमाने को रास्ता बताने के लिए
हर रोज एक नया चेहरा क्यों चाहिए,
इंसानों को इंसानों से बचाने के लिए
रोज किसी नए चौकीदार का पहरा क्यों चाहिए,
यकीनन इस धरती पर लोग
कभी भरोसे लायक नहीं रहे
वरना कदम दर कदम
धोखे से बचने के लिए एक ईमानदार क्यों चाहिए।
बचपन
जब मैं छोटा था, शायद दुनिया बहुत बड़ी हुआ करती थी..
मुझे याद है मेरे घर से “स्कूल” तक का वो रास्ता, क्या क्या नहीं था
वहां, चाट के ठेले, जलेबी की दुकान, बर्फ के गोले, सब कुछ,
अब वहां “मोबाइल शॉप”, “विडियो पार्लर” हैं, फिर भी सब सूना है..
शायद अब दुनिया सिमट रही है…
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जब मैं छोटा था, शायद शामे बहुत लम्बी हुआ करती थी.
मैं हाथ में पतंग की डोर पकडे, घंटो उडा करता था, वो लम्बी “साइकिल रेस”,
वो बचपन के खेल, वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती, दिन ढलता है और सीधे रात हो जाती है.
शायद वक्त सिमट रहा है..
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जब मैं छोटा था, शायद दोस्ती बहुत गहरी हुआ करती थी,
दिन भर वो हुज़ोम बनाकर खेलना, वो दोस्तों के घर का खाना, वो लड़कियों की
बातें, वो साथ रोना, अब भी मेरे कई दोस्त हैं,
पर दोस्ती जाने कहाँ है, जब भी “ट्रेफिक सिग्नल” पे मिलते हैं “हाई” करते
हैं, और अपने अपने रास्ते चल देते हैं,
होली, दिवाली, जन्मदिन , नए साल पर बस SMS आ जाते हैं
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..
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जब मैं छोटा था, तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,
छुपन छुपाई, लंगडी टांग, पोषम पा, कट थे केक, टिप्पी टीपी टाप.
अब इन्टरनेट, ऑफिस, हिल्म्स, से फुर्सत ही नहीं मिलती..
शायद ज़िन्दगी बदल रही है.
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जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है.. जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर बोर्ड पर
लिखा होता है.
“मंजिल तो यही थी, बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी यहाँ आते आते “
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