Sunday 28 September 2014

दूरदर्शी..!!

 
एक आदमी सोना तोलने के लिए सुनार के पास तराजू मांगने आया। सुनार ने कहा, ‘‘मियाँ, अपना रास्ता लो। मेरे पास छलनी नहीं है।’’ उसने कहा, ‘‘मजाक न कर, भाई, मुझे तराजू चाहिए।’’

सुनार ने कहा, ‘‘मेरी दुकान में झाडू नहीं हैं।’’ उसने कहा, ‘‘मसखरी को छोड़, मै तराजू मांगने आया हूँ, वह दे दे और बहरा बन कर ऊटपटांग बातें न कर।’’

सुनार ने जवाब दिया, ‘‘हजरत, मैंने तुम्हारी बात सुन ली थी, मैं बहरा नहीं हूँ। तुम यह न समझो कि मैं गोलमाल कर रहा हूँ। तुम बूढ़े आदमी सुखकर काँटा हो रहे हो। सारा शरीर काँपता हैं। तुम्हारा सोना भी कुछ बुरादा है और कुछ चूरा है। इसलिए तौलते समय तुम्हारा हाथ काँपेगा और सोना गिर पड़ेगा तो तुम फिर आओगे कि भाई, जरा झाड़ू तो देना ताकि मैं सोना इकट्ठा कर लूं और जब बुहार कर मिट्टी और सोना इकट्ठा कर लोगे तो फिर कहोगे कि मुझे छलनी चाहिए, ताकि ख़ाक को छानकर सोना अलग कर सको। हमारी दुकान में छलनी कहां? मैंने पहले ही तुम्हारे काम के अन्तिम परिणाम को देखकर दूरदर्शिता से कहा था कि तुम कहीं दूसरी जगह से तराजू मांग लो।’’ 

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