Monday 27 May 2013

एक घर जहां आज भी मुर्दे घुमतें है..!!



यह सुनकर आपकों थोड़ा अजीब जरूर लग रहा होगा, लेकिन यह सच है। इस दुनिया में एक ऐसी भी जगह है जहां एक घर जो कि अपने ही निर्माण कराने वालें लोगों की मौत का गवाह बना खड़ा है। इन मौतों को हुए बहुत समय बीत गया लेकिन उन लोगों को उनके घर में, कमरों में आज भी देखा जाता है। इस घर में किसी की मौत अपने आप हुयी तो किसी ने बिमारी के चलते जान गवाई लेकिन सभी लोग इसी घर में मरें।

आज हम आपकों अपने इस लेख में यूएसए के एक ऐसे घर के बारें में बताएंगे जो अमेरिका सबसे डरावना घर कहा जाता है जिसका नाम है वैले हाउस। वैले हाउस जहां आज भी वैले परिवार जो कि अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनकी रूहें आज भी इस घर में अपना बसेरा किये हुए है। आज इस इक्‍कीसवीं शताब्‍दी जिस समय दुनिया विज्ञान के बल बुते इतना आगे हो गयी है जो कि इंसान को सबकुछ करने की शक्‍ती देती हैं। लेकिन दुनिया में एक ऐसी भी शक्‍ती है जहां इंसान और उसका विज्ञान दोनों ही घुटने देक देतें है वो है मौत, और रूहों की दुनिया।

दुनिया भर में कई लोंगों ने इन रूहों से रूबरू होने की बात को स्‍वीकार किया है लेकिन बहुत से ऐसे भी लोग है जो इन बातों में विश्‍वास नहीं करते है। ऐसे लोगों के लिए किसी ने सिर्फ एक बात कही है कि, इसे वही मान सकते है जो दुनिया में अपनी जिंदगी को होने को मानते है। मतलब यह कि जब आप खुद इनसे रूबरू होंगे तभी इन बातों पर विश्‍वास कर पायेंगे। इसके अलांवा कुछ लोग डर के कारण इन बातों पर विश्‍वास नहीं करना चाहतें है। तो आइए एक बार अमेरिका के उस वैले परिवार और उस खौफनाक घर के बारें में जानतें है।

वैले हाउस

वैले हाउस कों थामस वैले में सन 1857 में बनवाया था। वैले हाउस एक ऐसा घर था जो कि पुराने सैन डिएगों कैलिर्फोनिया में एकांत में बनवाया गया था। इस मकान को थामस वैले ने खुद डिजाइन किया था, और उस समय 10,000 डालर का खर्चा इस मकान पर किया था। वैले हाउस काफी बड़ा मकान है इसमें उस समय की आधुनिक सुख सुवधिओं की पुरी व्‍यवस्‍था की गयी थी।

वैले परिवार

वैले हाउस कों थामस वैले में सन 1857 में बनवाया था, थामस वैले का जन्‍म अमेरिका के न्‍यूयार्क शहर में सन 1823 में हुआ था। थामस कुछ दिन न्‍यूयार्क में रहकर वापस सैन डियोंगों में आकर बस गये थे और वहीं पर उन्‍होने अपने वैले हाउस का निर्माण कराया था। उस समय उनके साथ उनक पत्‍नी और तीन बच्‍चें भी इस घर में रहने के लिए आयें थे।

वैले हाउस में हादसें

वैले हाउस में हादसों की शुरूआत वैले के 18 महीने के बेटे जूनीयर थामस के मौत से हुयी। थामस अभी 18 महिने का ही हुआ था कि उसे तेज ज्‍वर ने अपने कब्‍जे में ले लिया और उसकी मौत हो गयी। आपकों बतां दे कि वैले परिवार के इस घर में आने से पहले ही थामस मानते थे कि इस घर पर रूहों का कब्‍जा है। ऐसा बताया जाता है कि जिस साल उन्‍होने इस घर को बनवाना शुरू किया था उसी वर्ष एक व्‍यक्ति ने फांसी लगाकर जान दे दी थी, और उसकी आत्‍मा आज भी मकान के इर्दगिर्द घुमती रहती है।

बेटे की मौत के बाद इस परिवार में कुछ सालों के बाद दो और बेटियों का जन्‍म हुआ। उसके कुछ सालों के बाद थामस की पत्‍नी की भी बिमारी के चलते मौत हो गयी। थामस के बडे बेटे ने वायलेट वैले ने जार्ज टी बर्टो नाम की लडकी से शादी कर ली। शादी के कुछ दिनों बाद ही दोनों में तलाक हो गया और वायलट यह सदमा वर्दाश्‍त न कर सका और उसने अपने कमरे में खुद को सीने में गोली मार कर आत्‍मत्‍या कर ली।

वहीं थामस की दूसरी बेटी अन्‍ना आलिया ने जान ट्वेल्‍थी से शादी की थी। जो कि उसी घर में रहा करता था, घर में पहले से मौजूद रूह ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था और एक एक करके थामस परिवार पर अपना कहर ढाह रही थी। इसी बीच सन जॉन की भी बिमारी के चलते मौत हो गयी। मौतों का जो ये सिलसिला शुरू हुआ तो सन 1961 तक चलता रहा और एक एक कर इस घर के सभी सदस्‍यों की मौत हो गयी।

घर में घुमतें मुर्दे

वैले हाउस जो कि अपने ही बनाने वालों की मौत की वजह बन गया इसके कारण इस मकान को कोई भी खरीदने के लिए तैयार नहीं होता था। लोगों का मानना था कि जो भी इस मकान को खरीदेगा या इसमें रहेगा उसे भी ऐ रूहें मौत दे देगी। आज भी इस मकान में थामस को उसके कमरे में चहल कदमी करते महसूस किया जाता है। सबसे खैफनाक मंजर तो वो होता है जब आलिया अपने कमरें में अपने बालों को सवांरती है, उस समय उसकी छाया साफ तौर पर आइने में देखी जा सकती है।

वहीं कुछ लोगों ने घर के पिछे वालें कमरें में अन्‍य सदस्‍यों के भी होने का आभास किया जाता है। इस घर को सरकार ने अब अपने कब्‍जे में ले लिया है। इस घर में एक घोस्‍ट हंटर्स ने अपना रिर्सच किया था। उस रिसर्च की टीम में शामिल एक व्‍यक्ति ने बताया कि जब वो इस घर में प्रवेश कर रहा था उसी समय रात के 1 बज रहे थे और चारों तरफ भयानक अधेरा था।

जब वो घर के अंदर पहले कमरे में दाखिल हुआ तो उसे लगा कि कोई महिला जो कि अपने हाथों में कुछ लिए हुए है और अन्‍दर के कमरें की दरवाजें की तरफ जा रही है। जब उस व्‍यक्ति ने उसे पुकारा तो वो पिछे मुडी उस समय उसके बालों से उसका पुरा चेहरा ढका था और हाथों में एक कंघी की जैसी कोई चीज थी। उस समय जब टीम के उस सदस्‍य ने उस पर टार्च की लाईट दी तो वो उस दरवाजें में समा गयी।

इसके अलांवा वैले हाउस में वायलट का कमरे में जब वो गया तो उसे महसूस हुआ कि कोई उसके पिछे पिछे आ रहा है और जब उसने पिछे पलट कर देखा तो वैले का पुरा परिवार उसके पिछे खडा था। इतना देखकर वो जल्‍दी से वायलट के कमरे में घुस गया जहां एक आराम कुर्सी थी जो कि अपने आप हिल रही थी। जब वो कुर्सी के पास गया तो उसने देखा की कतरे की खिड़की जिस पर शीशें लगे हुऐ थे उस शीशें कोई अंदर देख रहा था। उसी वक्‍त वो सदस्‍य दौड़कर खिड़की के पास पहुंचा तो वो साया जो कि खिडकी से झांक रही थी वो नीचे कुद गयी। उसके बाद उसने खिड़की के शीशें पर गौर किया तो उसे लगा कि शीशें पर जैसे ताजें खून के धब्‍बे लगें थे।

वैल हाउस में रहने वाले जिनकी मौत हो गयी वो अब इस दुनिया में इंसानी रूप में नही है लेकिन उनकी रूहे आज भी वैले हाउस को छोड़ नही पायी है। आप भी आज उन रूहों को आसानी से महसूस कर सकते है। बस जरूरत है थोडे से हिम्‍मत और इच्‍छा की। वैले हाउस को सरकार ने एक म्‍यूजीयम के तौर पर शुरू कर दिया है। आज बहुत से लोग वैले हाउस में जाकर थामस वैले के परिवार को महसूस करतें है। लेकिन सरकार ने मकान के कुछ हिस्‍सों को प्रतिबंधित कर दिया है।

किला जहां सूरज ढलते ही जाग जाती हैं आत्‍माएं..!!



पुराने किले, मौत, हादसों, अतीत और रूहों का अपना एक अलग ही सबंध और संयोग होता है। ऐसी कोई जगह जहां मौत का साया बनकर रूहें घुमती हो उन जगहों पर इंसान अपने डर पर काबू नहीं कर पाता है और एक अजीब दुनिया के सामने जिसके बारें में उसे कोई अंदाजा नहीं होता है, अपने घुटने टेक देता है। दुनिया भर में कई ऐसे पुराने किले है जिनका अपना एक अलग ही काला अतीत है और वहां आज भी रूहों का वास है। दुनिया में ऐसी जगहों के बारें में लोग जानते है, लेकिन बहुत कम ही लोग होते हैं, जो इनसे रूबरू होने की हिम्‍मत रखतें है। जैसे हम दुनिया में अपने होने या ना होने की बात पर विश्‍वास करतें हैं वैसे ही हमारे दिमाग के एक कोने में इन रूहों की दुनिया के होने का भी आभास होता है। ये दीगर बात है कि कई लोग दुनिया के सामने इस मानने से इनकार करते हों, लेकिन अपने तर्कों से आप सिर्फ अपने दिल को तसल्‍ली दे सकते हैं, दुनिया की हकीकत को नहीं बदल सकते है। कुछ ऐसा ही एक किलें के बारे में आपको बताउंगा जो क‍ि अपने सीने में एक शानदार बनावट के साथ-साथ एक बेहतरीन अतीत भी छुपाए हुए है। अभी तक आपने इस सीरीज के लेखों में केवल विदेश के भयानक और डरावनी जगहों के बारें में पढ़ा है, लेकिन आज आपको अपने ही देश यानी की भारत के एक ऐसे डरावने किले के बारे में बताया जायेगा, जहां सूरज डूबते ही रूहों का कब्‍जा हो जाता है और शुरू हो जाता है मौत का तांडव। राजस्‍थान के दिल जयपुर में स्थित इस किले को भानगड़ के किले के नाम से जाना जाता है। तो आइये इस लेख के माध्‍यम से भानगड़ किले की रोमांचकारी सैर पर निकलते हैं। भानगड़ किला एक शानदार अतीत के आगोश में भानगड़ किला सत्रहवीं शताब्‍दी में बनवाया गया था। इस किले का निर्माण मान सिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने करावाया था। राजा माधो सिंह उस समय अकबर के सेना में जनरल के पद पर तैनात थे। उस समय भानगड़ की जनसंख्‍या तकरीबन 10,000 थी। भानगढ़ अल्‍वार जिले में स्थित एक शानदार किला है जो कि बहुत ही विशाल आकार में तैयार किया गया है। चारो तरफ से पहाड़ों से घिरे इस किले में बेहतरीन शिल्‍पकलाओ का प्रयोग किया गया है। इसके अलावा इस किले में भगवान शिव, हनुमान आदी के बेहतरीन और अति प्राचिन मंदिर विध्‍यमान है। इस किले में कुल पांच द्वार हैं और साथ साथ एक मुख्‍य दीवार है। इस किले में दृण और मजबूत पत्‍थरों का प्रयोग किया गया है जो अति प्राचिन काल से अपने यथा स्थिती में पड़े हुये है।

भानगड़ किला जो देखने में जितना शानदार है उसका अतीत उतना ही भयानक है। आपको बता दें कि भानगड़ किले के बारें में प्रसिद्व एक कहानी के अनुसार भागगड़ की राजकुमारी रत्‍नावती जो कि नाम के ही अनुरूप बेहद खुबसुरत थी। उस समय उनके रूप की चर्चा पूरे राज्‍य में थी और साथ देश कोने कोने के राजकुमार उनसे विवाह करने के इच्‍छुक थे। उस समय उनकी उम्र महज 18 वर्ष ही थी और उनका यौवन उनके रूप में और निखार ला चुका था। उस समय कई राज्‍यो से उनके लिए विवाह के प्रस्‍ताव आ रहे थे। उसी दौरान वो एक बार किले से अपनी सखियों के साथ बाजार में निकती थीं। राजकुमारी रत्‍नावती एक इत्र की दुकान पर पहुंची और वो इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खुशबू ले रही थी। उसी समय उस दुकान से कुछ ही दूरी एक सिंघीया नाम व्‍यक्ति खड़ा होकर उन्‍हे बहुत ही गौर से देख रहा था। सिंघीया उसी राज्‍य में रहता था और वो काले जादू का महारथी था। ऐसा बताया जाता है कि वो राजकुमारी के रूप का दिवाना था और उनसे प्रगाण प्रेम करता था। वो किसी भी तरह राजकुमारी को हासिल करना चाहता था। इसलिए उसने उस दुकान के पास आकर एक इत्र के बोतल जिसे रानी पसंद कर रही थी उसने उस बोतल पर काला जादू कर दिया जो राजकुमारी के वशीकरण के लिए किया था।


राजकुमारी रत्‍नावती ने उस इत्र के बोतल को उठाया, लेकिन उसे वही पास के एक पत्‍थर पर पटक दिया। पत्‍थर पर पटकते ही वो बोतल टूट गया और सारा इत्र उस पत्‍थर पर बिखर गया। इसके बाद से ही वो पत्‍थर फिसलते हुए उस तांत्रिक सिंघीया के पीछे चल पड़ा और तांत्रिक को कुलद दिया, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी। मरने से पहले तांत्रिक ने शाप दिया कि इस किले में रहने वालें सभी लोग जल्‍द ही मर जायेंगे और वो दोबारा जन्‍म नहीं ले सकेंगे और ताउम्र उनकी आत्‍माएं इस किले में भटकती रहेंगी। उस तांत्रिक के मौत के कुछ दिनों के बाद ही भानगडं और अजबगढ़ के बीच युद्व हुआ जिसमें किले में रहने वाले सारे लोग मारे गये। यहां तक की राजकुमारी रत्‍नावती भी उस शाप से नहीं बच सकी और उनकी भी मौत हो गयी। एक ही किले में एक साथ इतने बड़े कत्‍लेआम के बाद वहां मौत की चींखें गूंज गयी और आज भी उस किले में उनकी रू‍हें घुमती हैं।

किलें में सूर्यास्‍त के बाद प्रवेश निषेध फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती हैं। एएसआई ने सख्‍त हिदायत दे रखा है कि सूर्यास्‍त के बाद इस इलाके किसी भी व्‍यक्ति के रूकने के लिए मनाही है। इस किले में जो भी सूर्यास्‍त के बाद गया वो कभी भी वापस नहीं आया है। कई बार लोगों को रूहों ने परेशान किया है और कुछ लोगों को अपने जान से हाथ धोना पड़ा है।

किलें में रूहों का कब्‍जा इस किले में कत्‍लेआम किये गये लोगों की रूहें आज भी भटकती हैं। कई बार इस समस्‍या से रूबरू हुआ गया है। एक बार भारतीय सरकार ने अर्धसैनिक बलों की एक टुकड़ी यहां लगायी थी ताकि इस बात की सच्‍चाई को जाना जा सकें, लेकिन वो भी असफल रही कई सैनिकों ने रूहों के इस इलाके में होने की पुष्ठि की थी। इस किले में आज भी जब आप अकेलें होंगे तो तलवारों की टनकार और लोगों की चींख को महसूस कर सकतें है। इसके अलांवा इस किले भीतर कमरों में महिलाओं के रोने या फिर चुडि़यों के खनकने की भी आवाजें साफ सुनी जा सकती है। किले के पिछले हिस्‍सें में जहां एक छोटा सा दरवाजा है उस दरवाजें के पास बहुत ही अंधेरा रहता है कई बार वहां किसी के बात करने या एक विशेष प्रकार के गंध को महसूस किया गया है। वहीं किले में शाम के वक्‍त बहुत ही सन्‍नाटा रहता है और अचानक ही किसी के चिखने की भयानक आवाज इस किलें में गुंज जाती है। आपको यह आर्टिकल कैसा लगा कमेंट बॉक्‍स में अपने विचार जरूर दें।

Saturday 25 May 2013

क्या लोगों को आपकी कमी खलेगी..!!


लगभग सौ साल पहले एक व्यक्ति ने सुबह समाचार पत्र में स्वयं की मृत्यु का समाचार छपा देखा और वह स्तब्ध रह गया. वास्तव में समाचार पत्र से बहुत बड़ी गलती हो गई थी और गलत व्यक्ति की मृत्यु का समाचार छप गया. उस व्यक्ति ने समाचार पत्र में पढ़ा – “डायनामाईट किंग अल्फ्रेड नोबेल की मृत्यु… वह मौत का सौदागर था”.

अल्फ्रेड नोबेल ने जब डायनामाईट की खोज की थी तब उन्हें पता नहीं था कि खदानों और निर्माणकार्य में उपयोग के लिए खोजी गई विध्वंसक शक्ति का उपयोग युद्घ और हिंसक प्रयोजनों में होने लगेगा. अपनी मृत्यु का समाचार पढ़कर नोबेल के मन में पहला विचार यही आया – “क्या मैं जीवित हूँ? ‘मौत का सौदागर ‘अल्फ्रेड नोबेल’… क्या दुनिया मेरी मृत्यु के बाद मुझे यही कहकर याद रखेगी?”

उस दिन के बाद से नोबेल ने अपने सभी काम छोड़कर विश्व-शांति के प्रसार के लिए प्रयत्न आरम्भ कर दिए.

स्वयं को अल्फ्रेड नोबेल के स्थान पर रखकर देखें और सोचें:

* आपकी धरोहर क्या है?

* आप कैसे व्यक्ति के रूप में याद किया जाना पसंद करेंगे?

* क्या लोग आपके बारे में अच्छी बातें करेंगे?

* क्या लोग आपको मृत्यु के बाद भी प्रेम और आदर देंगे?

* क्या लोगों को आपकी कमी खलेगी?

लिंकन की सहृदयता..!!



संयुक्त राज्य अमेरिका के महानतम राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन लोकतंत्र के मसीहा माने जाते हैं। राष्ट्रपति बनने से पहले भी वे बहुत लोकप्रिय नेता थे। वे हमेशा जनमत का आदर करते थे। साधारण से साधारण व्यक्ति के अच्छे सुझाव को मान लेने में उन्हें संकोच नहीं होता था।



१८६० की बात है। ग्रेस नामक एक ११ वर्षीय बालिका ने अपने पिता के कमरे में टंगी लिंकन की तस्वीर पर दाढ़ी बना दी। पिता बहुत नाराज़ हुए लेकिन ग्रेस ने कहा कि लिंकन के चेहरे पर दाढ़ी होती तो वे ज्यादा अच्छे लगते क्योंकि वे दुबले-पतले हैं।

ग्रेस ने तय किया कि वह लिंकन को दाढ़ी रखने के लिए लिखेगी। उसने लिंकन को पत्र में लिखा – “चूंकि आप दुबले-पतले हैं इसलिए यदि आप दाढ़ी रख लें तो आप ज्यादा अच्छे दिखेंगे और आपके समर्थकों कि संख्या भी बढ़ जायेगी।”

लिंकन ने ग्रेस को उसके सुझाव के लिए धन्यवाद का पत्र भेजा। कुछ दिनों बाद वे जब ग्रेस के नगर में पहुंचे तो सभी ने उनका स्वागत किया। उन्होंने ग्रेस से मिलने कि इच्छा प्रकट की।

ग्रेस से मिलने पर उन्होंने बड़े प्यार से उसे गले लगा लिया और बोले – “प्यारी बिटिया, देखो मैंने तुम्हारा सुझाव मानकर दाढ़ी रख ली है।”

नन्ही ग्रेस खुशी से फूली न समाई।

बाद में लिंकन की दाढ़ी उनकी खास पहचान बन गई। एक नन्ही बालिका के सुझाव को भी इतना महत्त्व देनेवाले लिंकन अमेरिका के कुछ ही ऐसे राष्ट्रपतियों में गिने जाते हैं जिनका सम्मान पूरी दुनिया करती है।

जेफरसन की सादगी..!!



अमेरिकी डालर के अलग-अलग डिनोमिनेशन के नोटों पर किन-किन के चित्र छपे होते है? मेरी जानकारी में वे महानुभाव हैं जॉर्ज वाशिंगटन, अब्राहम लिंकन, बेंजामिन फ्रेंकलिन, और थॉमस जेफरसन। यदि किसी को कोई और महाशय का नाम याद आता हो तो वो बताये। खैर, यह प्रसंग थॉमस जेफरसन के बारे में है जो अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति थे।



बात बहुत पुरानी है। जेफरसन सन १८०० के आसपास अमेरिका के राष्ट्रपति थे। उन दिनों तक फोटोग्राफी का आविष्कार नहीं हुआ था। अख़बार वगैरह भी न के बराबर छपते थे। अमेरिका की राजधानी की शक्ल आज के किसी गाँव से बेहतर नहीं रही होगी। लोग अपने राष्ट्रपति को नहीं पहचानते थे।

जेफरसन मूलतः एक किसान थे। वे कृषकों और मजदूरों के प्रबल समर्थक थे। अमेरिका ने उन जैसा सादगीपूर्ण राष्ट्रपति कोई और न देखा होगा। राष्ट्रपति बनने के बाद भी उनका जीवन अत्यन्त सादा था।

एक बार वे किसी अन्य नगर में बड़े से होटल में गए और ठहरने के लिए कमरा माँगा। होटल मालिक ने उन्हें ऊपर से नीचे तक देखा और कमरा देने से इंकार कर दिया। जेफरसन चुपचाप वहां से चल दिए।

होटल में मौजूद किसी दूसरे व्यक्ति ने उन्हें पहचान लिया और उसने होटल मालिक को बताया कि उसने अमेरिका के राष्ट्रपति को कमरा देने से मना कर दिया है!

होटल का मालिक अपने नौकरों के साथ भागा-भागा उनकी तलाश में गया। जेफरसन अभी थोड़ी दूर ही गए थे। मालिक ने उनसे अपने बर्ताव के लिए माफ़ी मांगी और होटल में चलने के लिए कहा।

जेफरसन ने उससे कहा – “यदि तुम्हारे होटल में एक साधारण आदमी के लिए जगह नहीं है तो अमेरिका का राष्ट्रपति वहां कैसे ठहर सकता है!?” यह कहकर वे किसी और होटल में ठहरने के लिए चले गए।

प्रेमचंद का कोट..!!



हिंदी के महानतम कथाकार प्रेमचंद का जीवन अत्यंत सादगीपूर्ण था. उनके पास एक पुराना कोट था जो फट गया था लेकिन वे उसी को पहने रहते थे.

उनकी पत्नी शिवरानी देवी ने कई बार उनसे नया कोट बनवाने के लिए कहा लेकिन प्रेमचंद ने हर बार पैसों की कमी बताकर बात टाल दी. एक दिन शिवरानी देवी ने उन्हें कुछ रुपये निकालकर दिए और कहा – “बाजा़र जाकर कोट के लिए अच्छा कपड़ा ले आइये.”

प्रेमचंद ने रुपये ले लिए और कहा – “ठीक है. आज कोट का कपड़ा आ जाएगा.”

शाम को उन्हें खाली हाथ लौटा देखकर शिवरानी देवी ने पूछा – “कोट का कपड़ा क्यों नहीं लाए?”

प्रेमचंद कुछ क्षणों के लिए चुप रहे, फिर बोले – “मैं कपड़ा लेने के लिए निकला ही था कि प्रैस का एक कर्मचारी आ गया. उसकी लड़की की शादी के लिए पैसों की कमी पड़ गई थी. उसने मुझे वह सब इतनी लाचारी और उदासी से बताया कि मुझसे रहा नहीं गया. मैंने कोट के रुपये उसे दे दिए. कोट तो फिर कभी बन सकता है लेकिन लड़की की शादी नहीं टल सकती.”

शिवरानी देवी मन मसोस कर धीरे से बोलीं – “वो नहीं तो तुम्हें कोई और मिल जाता. मैं पहले ही जानती थी कि तुम्हारे हाथों में पैसे देकर कोट कभी नहीं आ सकता.”

प्रेमचंद के चेहरे पर संतोष की मुस्कान खिली हुई थी.

खोटा सिक्का..!!



यह एक सूफी कथा है. किसी गाँव में एक बहुत सरल स्वभाव का आदमी रहता था. वह लोगों को छोटी-मोटी चीज़ें बेचता था. उस गाँव के सभी निवासी यह समझते थे कि उसमें निर्णय करने, परखने और आंकने की क्षमता नहीं थी. इसीलिए बहुत से लोग उससे चीज़ें खरीदकर उसे खोटे सिक्के दे दिया करते थे. वह उन सिक्कों को ख़ुशी-ख़ुशी ले लेता था. किसी ने उसे कभी भी यह कहते नहीं सुना कि ‘यह सही है और यह गलत है’. कभी-कभी तो उससे सामान लेनेवाले लोग उसे कह देते थे कि उन्होंने दाम चुका दिया है, और वह उनसे पलटकर कभी नहीं कहता था कि ‘नहीं, तुमने पैसे नहीं दिए हैं’. वह सिर्फ इतना ही कहता ‘ठीक है’, और उन्हें धन्यवाद देता.

दूसरे गाँवों से भी लोग आते और बिना कुछ दाम चुकाए उससे सामान ले जाते या उसे खोटे पैसे दे देते. वह किसी से कोई शिकायत नहीं करता.

समय गुज़रते वह आदमी बूढ़ा हो गया और एक दिन उसकी मौत की घड़ी भी आ गयी. कहते हैं कि मरते हुए ये उसके अंतिम शब्द थे: – “मेरे खुदा, मैंने हमेशा ही सब तरह के सिक्के लिए, खोटे सिक्के भी लिए. मैं भी एक खोटा सिक्का ही हूँ, मुझे मत परखना. मैंने तुम्हारे लोगों का फैसला नहीं किया, तुम भी मेरा फैसला मत करना.”!!

कब उसको भूल गए ये भी तो पता ना लगा..!!



वो बे-हिसी के दिन आये की कुछ हुआ ना लगा
कब उसको भूल गए ये भी तो पता ना लगा

बिछुड़ते वक़्त दिलासे ना खोखले वादे
वो पहली बार मुझे आज बे-वफ़ा ना लगा

जहां पे दस्तकें पहचान कर जवाब मिले
गुज़र भी ऐसे मकान से हो तो सदा ना लगा

ये देखने का सलीका भी किसको आता है
की उसने देखा मुझे और देखता ना लगा

वसीम अपने गिरेबान में झाँक कर देखा
तो अपने चारों तरफ कोई भी बुरा ना लगा..!!

मुझे होश नहीं..!!



कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं है
रात के साथ गयी बात मुझे होश नहीं

मुझ को ये भी नहीं मालूम की जाना है कहाँ
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं


आंसूंओं और शराबों में गुज़र है अब तो
मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं


जाने क्या टूटा है पैमाना की दिल है मेरा
बिखरे बिखरे हैं खयालात मुझे होश नहीं..!!

Safar ke had hai vahan tak..!!



Safar ke had hai vahan tak ke kuch nishan rahe
chale chalo ke jahan tak ye aasman rahe

ye kya uthaye qadam aur aa gai manzil
maza to jab hai ke pairon mein kuch thakan rahe

wo shakhs mujh ko koi jalsaz lagata hai
tum us ko dost samajhate ho phir bhi dhyan rahe

mujhe zamin ke geharaion ne dab liya
main chahata tha mere sar pe aasman rahe

ab apne bich marasim nahi adavat hai
magar ye baat hamare hi darmiyan rahe

magar sitaron ke faslen uga saka na koi
meri zamin pe kitne hi aasman rahe

wo ek saval hai phir us ka samana hoga
dua karo ke salamat meri zaban rahe..!!

Thursday 23 May 2013

कुछ ख्वाहिशो के पंख..!!



कुछ ख्वाहिशो के पंख मुझे भी दे दो
इस डूबते हुआ तिनके को सहरा दे दो
कोई मेरी डूबती को कश्ती किनारा दे दो
मुझे भी कोई पतवार और माझी भी दे दो
कुछ ख्वाहिशो के पंख मुझे भी दे दो

मै नन्हे पैरो से कितनी दूर चल पाउगा
गिरते , उठते कब तक संभल पाउगा
कोई थामने वाले हाथ मुझे भी दे दो
कोई अपना साया और साथ भी दे दो
कुछ ख्वाहिशो के पंख मुझे भी दे दो ……

आस्मां को देखकर कब तक सो जाउगा
तारो मै कब तक अपनों को देखता जाउगा
कुछ परियो के कहानिया मुझे भी दे दो
टूटा तारो वाली किस्मत मुझे भी दे दो
कुछ ख्वाहिशो के पंख मुझे भी दे दो..!!

Saturday 18 May 2013

दिल में इक हौंसला सा है कि कोई मेरे साथ तो है..!!



गम कुछ कम नहीं हुए तुझसे मिलने के बाद मगर!
दिल में इक हौंसला सा है कि कोई मेरे साथ तो है!!

कांटे मेरी राहों के हरसूरत मेरे हिस्से में ही आयेंगे!
गर इक गुल है मेरे साथ तो जरूर कोई बात तो है!!

मुझे आज तक जो भी मिला,मशक्कत से मिला!
तुझ से मिलने में मेरी तकदीर का कुछ हाथ तो है!!

अंधेरे कहां समझते हैं भला मशाल के जलने का दर्द!
वजह कोई भी हो हर सूरत में दोनों की मात तो है!!

डूबने वाले के लिये फ़र्क नहीं मंझधार और किनारे में!
बेबसी का सबब जिन्दगी के उलझे हुये हालात ही तो हैं!!

गम कुछ कम नहीं हुए तुझसे मिलने के बाद मगर!
दिल में इक हौंसला सा है कि कोई मेरे साथ तो है..!!

आओ कुछ बात करे, हम तन्हा कय़ों है..!!



आओ कुछ बात करे, हम तन्हा कय़ों है?
आओ कुछ दिल की कहे, हम तन्हा कय़ों है?
कोई बस इतना बता दे, हम तन्हा कय़ों है?
कोई तो मुझको सदा दे, हम तन्हा कय़ों है?

रोज़ मिलती है मुझे, ये कोई अजनबी जैसे,
रूठी हुई है मुझसे, मेरी परछाई ऐसे,
कोई समेटो ज़रा, कोई तो बुला दो इसको,
मुझसे थोडी बहुत पह्चान करा दो इसको,

आओ हाथ थामो मेरा, हम तन्हा कय़ों है?
दिल की धड्कन का शोर कभी सुनता नही,
खवाब भी आखों मे अब कोई पलता नही,
आईना है मगर इसमें कुछ नज़र आता नही,

खाली घर का खालीपन कुछ भाता नही,
मुझको खुद से मुलाकात करा दे ऎ-खुदा,
कोई तो मुझको दुआ दे, हम तन्हा कय़ों है..!!

कहने को तो हम, खुश अब भी हैं..!!



कहने को तो हम, खुश अब भी हैं
हम तुम्हारे तब भी थे, हम तुम्हारे अब भी हैं

रूठने-मनाने के इस खेल में, हार गए हैं हम
हम तो रूठे तब ही थे, आप तो रूठे अब भी हैं

मेरी ख़ता बस इतनी है, तुम्हारा साथ चाहता हूँ
तब तो पास होके दूर थे, और दूरियाँ अब भी हैं

मुझसे रूठ के दूर हो, पर एहसास तो करो
प्यासे हम तब भी थे, प्यासे हम अब भी हैं

इस इंतज़ार में मेरा क्या होगा, तुम फिक्र मत करना
सुकून से हम तब भी थे, सुकून से हम अब भी हैं

बस थोड़ा रूठने के अंजाम से डरते हैं
डरते हम तब भी थे, डरते हम अब भी हैं

हमारी तमन्ना कुछ ज़्यादा नहीं थी, जो पूरी न होती
कम में गुज़ारा तब भी था, कम में गुज़ारते अब भी हैं

चलते हैं तीर दिल पे कितने, जब तुम रूठ जाते हो
ज़ख्मी हम तब भी थे, ज़ख्मी हम अब भी हैं

मेरी मासूमियत को तुम, ख़ता समझ बैठे हो
मासूम हम तब भी थे, मासूम हम अब भी हैं

आप हमसे रूठा न करें, बस यही इल्तिजा है
फ़रियादी हम तब भी थे, फ़रियादी हम अब भी हैं

तुम हो किस हाल में, कम से कम ये तो बता दो
बेखब़र हम तब भी थे, बेखब़र हम अब भी हैं..!!

Mohabbat Humse Na Hogi..!!


Mohabbat Humse Na Hogi??

Suna hy Is Mohabt mE Bohat Nuksan hota hai,
Mehakta Jhoomta Jevan Ghamo k Naam hota hai,
Suna hai Chain Kho kr Wo Sehr se Sham Rota hai,
Mohabbat Jo b krta hai Bohat Bdnaam hota hai,

Mohabbat Humse na hogi??

Suna hai Is Mohabbat mE Kahin bi Dil nahi lgta,
Bina Uski Nigahon main Koi Mosam nahi Jachta,
Khfa Jis se Mohabbat ho Wo Jevan Bhr nahi Hansta,
Bohat Anmol hai Jo Dil Ujjar kar Phir nahi basta,

Mohabbat Humse na hogi

Mohabbat Humse na hogi..!!

Koi Aisa Shaks Bhi Hua Kare..!!


Koi Aisa Shaks Bhi Hua Kare,
Meri Dhadkano Ko Suna Kare..

Mein Ye Zindgi Us Pe Waar Du,
Wo Jo Khuloos-e-Dil Se Wafa Kare..

Mere Qarb Ko Wo Samjh Sake,
Mere Dard Ki Wo Dawa Kare..

Mujhe Us Se ISHQ Pe Naaz Ho,
Wo Jo Talab Mein Meri Raha Kare..

Meri LAAJ Uska Gharoor Ho,
Meri Aabroo Ka wo Difa Kare..

Kare Mosamon Ke Azaab Mein Wo,
Bahaar Ban K Mila Kare..

Jo Zubaan Meri Khamosh Ho,
To Mere Dil Mein Jhaank Wo Liya Kare..

Mera Dukh Us Ka Bhi Dard Ho,
Mere Saath Wo Bhi Jala Kare..

Koi Aisa Shaks Bhi To Hua Kare......!!

Muhajir Nama Collection 4


Muhajir hain magar ham ek duniya chor aaye hain,
tmhare paas jitna ha ham utna chor aye hain..!!

 Ab bhi laut jaane ki tamanna sar uthati hai,
ki ham jayas, naseerabad ,takiya chor aaye hain..!!

 Gale me haath daale ghoomte the mukhtalif mazhab
wo kaashi chor aaye hain wo mathura chor aaye hain..!!

 Kaha dhaka ki mammal aur kaha ye khaal se kapde
to kya ham apna shuk e perahan bhi chor aye hain..!!

 Ham uski "jheel aankhon " me kai kankar uchaal aaye
ham uske " phool chehre " par muhasa chor aaye hain..!!

 Hame rota hua wo shaks ab bhi yaad aata hai
jise ham be sabab aur be irada chor aaye hain..!!

 Parindon ki guzarish par bhi hamne kab kadam roke
sada deta hua ham ek papiiha chor aaye hain..!!

 sunhare khawab dekhein bhi to kis tarah dekhein
ki saare neend k mausam to us ja chor aaye hain..!!

 Agar sach-much koi puche to usko kya batayeinge,
ki apni masjidon ko kyu akela chor aaye hain..!!

 Hame apni taharat par hamesha naaz rehta tha,
magar ham dosti ko karke maila chor aaye hain..!!

 Muhajir hain magar ham ek duniya chor aaye hain,
tmhare paas jitna ha ham utna chor aye hain..!!

Friday 17 May 2013

यादों ने आज फिर मेरा दामन भिगो दिया..!!



यादों ने आज फिर मेरा दामन भिगो दिया
दिल का कुसूर था मगर आँखों ने रो दिया

मुझको नसीब था कभी सोहबत का सिलसिला
लेकिन मेरा नसीब कि उसको भी खो दिया

उनकी निगाह की कभी बारिश जो हो गई
मन में जमी जो मैल थी उसको भी धो दिया

गुल की तलाश में कभी गुलशन में जब गया
खुशबू ने मेरे पाँव में काँटा चुभो दिया

सोचा कि नाव है तो फिर मँझधार कुछ नहीं
लेकिन समय की मार ने मुझको डुबो दिया

दोस्तों वफ़ा के नाम पर अरमाँ जो लुट गए
मुझको सुकून है मगर लोगों ने रो दिया..!!

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सितम जिसने किया मुझ पर उसे अपना बनाया है
तभी तो ऐसा लगता है कि वो मेरा ही साया है

उदासी के अँधेरों ने जहाँ रस्ता मेरा रोका
तबस्सुम के चरागों ने मुझे रस्ता दिखाया है

कभी जब दिल की बस्ती में चली जज़्बात की आँधी
उसी आँधी के झोंकों ने ग़ज़ल कहना सिखाया है

भले दुनिया समझती है इसे दीवानगी मेरी
इसी दीवानगी ने तो मुझे शायर बनाया है

इसी दुनिया में बसती है जो रंगो नूर की दुनिया
नज़र आएगी क्या उसको जो घर में भी पराया है

मुझे इस लोक से मतलब नहीं उस लोक से दोस्तों
मुझे उस नूर से मतलब जो इस दिल में समाया है..!!

माँ तुम्हारी याद आती है..!!



कोई औरत जब थपकी से,
अपने बच्चे को सुलाती है!
खुद तो धूप सहती है,
बच्चे को आँचल ओढ़ाती है!
तो यह देख कर,
माँ तुम्हारी याद आती है!

पालने में सोता सोता,
अचानक चौक के राये!
चूल्हे पे खाना जलता,
छोड़ के वो भागती है !

मेरे लाल का चेहरा कहीं लाल न हो जाये,
रोते-रोते कहीं बेहाल न हो जाये!!
माँ अपने बच्चे को खिलोने से खिलाती है,
तो यह देख कर,माँ तुम्हारी याद आती है!!

जब परीक्षा के दिन चिंटू घबराता है,
किताब खोल के बस के पीछे भागता है!
माँ भाग कर उसे दही चीनी खिलाती है,
रास्ते के मंदिर में, हाथ जोड़ के जाना,
कोई गरीब दिख जाये तो दो रुपये देते जाना!

खाना परोस के परीक्षा का हाल पूछती है,
फिर मंदिर में अच्छे नंबरों की मन्नत मांग आती है
, तो ये सोच, आंखें नम,
माँ तुम्हरी याद आती है !!

पिता की डांट का सिलसिला,
जब कम नहीं होता!
माँ का पिता को समझाना की,
डांटना कोई हल नहीं होता!
इस बार जरूर कुछ करके दिखायेगा,
अपने क्‍लास में अव्‍वल जरूर आएगा!
चुपके चुपके से कहीं रो भी आती है ,
तो यह देख के माँ तुम्हारी याद आती है!!

कॉलेज के दिनों में मस्ती करके घर देर से आना,
फिर कोई पुराना सा बहाना बनाना,
पिता से लड़ के, हर जिद चिंटू की पूरी कराती है,
अपने बचे चुराए पैसे बेटे को दे देती है!
हर गलती को माफ़ कर वो मुस्कुराती है
तो ऐसे में माँ तुम्हारी याद आती है..!!

Monday 13 May 2013

Muhajir Nama Collection 3



Muhajir hain magar ham ek duniya chor aaye hain,
tmhare paas jitna ha ham utna chor aye hain..!!

 Hunar bunte hue jisko dikhati thi meri beti
uthate waqt dastarkhawn daliya chor aaye hain..!!

 Wo chilman jisse aansu khoon ki surat tapakte the
usi chilman k peeche ek chehra chor aaye hain..!!

 Wahan ki khaq bhi mumkin hai hamse faasla rakh'khe
ki hum aate hue uska bharosa chor aaye hain..!!

 Bht chup chup se rehte hain shikayat bhi nai karte,
ki ae khaq e watan ham sath tera chor aaye hain..!!

 Ham aoni bebasi pe kafe afsoos malte hain'
ki KHAWAJA aapka bhi aastana chor aaye hain..!!

 Hamari dosti rehti thi har mausam k phoolon se
ham apne ghar k aangan ko mahakta chor aaye hain..!!

 Abhi tak zayka bhuli nai h ye zabaa unka
nahari chor aaye h kulcha chor aaye hain..!!

 Jala karti thi jaha roz o shab rishton ki kindeelein
ham eisi basti me ghup andhera chor aaye hain..!!

 Puraani yadon k mausam bht takleef dete hain,
so ham yaadon k darwaze pe taala chor aaye hain..!!

 Wo sondhi rotiyaan hamko yaha kaise mayassar hon,
wo mitti se bana ham apna chulha chor aaye hain..!!

 Hame jo bhi saza di jaegi wo kam se kam hogi
kuti chaandi me khat kisi ka lipta chor aaye hain..!!

 Murawwat, dosti ,ikhlaaq, apnapan, milansaari
yaha aate hue kya kya asaasa chor aaye hain..!!

 Muhajir hain magar ham ek duniya chor aaye hain,
tmhare paas jitna ha ham utna chor aye hain..!!

घमंडी धनुर्धर..!!



धनुर्विद्या के कई मुकाबले जीतने के बाद एक युवा धनुर्धर को अपने कौशल पर घमंड हो गया और उसने एक ज़ेन-गुरु को मुकाबले के लिए चुनौती दी। ज़ेन-गुरु स्वयं बहुत प्रसिद्द धनुर्धर थे। युवक ने अपने कौशल का प्रदर्शन करने के लिए दूर एक निशाने पर अचूक तीर चलाया। उसके बाद उसने एक और तीर चलाकर निशाने पर लगे तीर को चीर दिया। फ़िर उसने अहंकारपूर्वक ज़ेन-गुरु से पूछा – “क्या आप ऐसा कर सकते हैं?”

ज़ेन-गुरु इससे विचलित नहीं हुए और उसने युवक को अपने पीछे-पीछे एक पहाड़ तक चलने के लिए कहा। युवक समझ नही पा रहा था कि ज़ेन-गुरु के मन में क्या था इसलिए वह उनके साथ चल दिया। पहाड़ पर चढ़ने के बाद वे एक ऐसे स्थान पर आ पहुंचे जहाँ दो पहाडों के बीच बहुत गहरी खाई पर एक कमज़ोर सा रस्सियों का पुल बना हुआ था। पहाड़ पर तेज़ हवाएं चल रहीं थीं और पुल बेहद खतरनाक तरीके से डोल रहा था। उस पुल के ठीक बीचोंबीच जाकर ज़ेन-गुरु ने बहत दूर एक वृक्ष को निशाना लगाकर तीर छोड़ा जो बिल्कुल सटीक लगा।

पुल से बाहर आकर ज़ेन-गुरु ने युवक से कहा – “अब तुम्हारी बारी है”। यह कहकर ज़ेन-गुरु एक ओर खड़े हो गए।

भय से कांपते-कांपते युवक ने स्वयं को जैसे-तैसे उस पुल पर किसी तरह से जमाने का प्रयास किया पर वह इतना घबरा गया था कि पसीने से भीग चुकी उसकी हथेलियों से उसका धनुष फिसल कर खाई में समा गया।

“इसमें कोई संदेह नही है की धनुर्विद्या में तुम बेमिसाल हो” – ज़ेन-गुरु ने उससे कहा – “लेकिन उस मन पर तुम्हारा कोई नियंत्रण नहीं जो किसी तीर को निशाने से भटकने नहीं देता”।

आख़री सफ़र..!!


(अमरीकन लेखक केंट नेर्बर्न ने आध्यात्मिक विषयों और नेटिव अमरीकन थीम पर कई पुस्तकें लिखीं हैं. नीचे दिया गया प्रसंग उनकी एक पुस्तक से लिया गया है)

बीस साल पहले मैं आजीविका के लिए टैक्सी चलाने का काम करता था. घुमंतू जीवन था, सर पर हुक्म चलानेवाला कोई बॉस भी नहीं था.

इस पेशे से जुडी जो बात मुझे बहुत बाद में समझ आई वह यह है कि जाने-अनजाने मैं चर्च के पादरी की भूमिका में भी आ जाता था. मैं रात में टैक्सी चलाता था इसलिए मेरी टैक्सी कन्फेशन रूम बन जाती थी. अनजान सवारियां टैक्सी में पीछे बैठतीं और मुझे अपनी ज़िंदगी का हाल बयान करने लगतीं. मुझे बहुत से लोग मिले जिन्होंने मुझे आश्चर्यचकित किया, बेहतर होने का अहसास दिलाया, मुझे हंसाया, कभी रुलाया भी.

इन सारे वाकयों में से मुझे जिसने सबसे ज्यादा प्रभावित किया वह मैं आपको बताता हूँ. एक बार मुझे देर रात शहर के एक शांत और संभ्रांत इलाके से एक महिला का फोन आया. हमेशा की तरह मुझे लगा कि मुझे किन्हीं पार्टीबाज, झगड़ालू पति-पत्नी-प्रेमिका, या रात की शिफ्ट में काम करनेवाले कर्मचारी को लिवाने जाना है.

रात के ढाई बजे मैं एक छोटी बिल्डिंग के सामने पहुंचा जिसके सिर्फ ग्राउंड फ्लोर के एक कमरे की बत्ती जल रही थी. ऐसे समय पर ज्यादातर टैक्सी ड्राईवर दो-तीन बार हॉर्न बजाकर कुछ मिनट इंतज़ार करते हैं, फिर लौट जाते हैं. लेकिन मैंने बहुत से ज़रूरतमंद देखे थे जो रात के इस पहर में टैक्सी पर ही निर्भर रहते हैं इसलिए मैं रुका रहा.

यदि कोई खतरे की बात न हो तो मैं यात्री के दरवाजे पर पहुँच जाता हूँ. शायद यात्री को मेरी मदद चाहिए, मैंने सोचा.

मैंने दरवाजे को खटखटाकर आहट की. “बस एक मिनट” – भीतर से किसी कमज़ोर वृद्ध की आवाज़ आई. कमरे से किसी चीज़ को खसकाने की आवाज़ आ रही थी.

लम्बी ख़ामोशी के बाद दरवाज़ा खुला. लगभग अस्सी साल की एक छोटी सी वृद्धा मेरे सामने खड़ी थी. उसने चालीस के दशक से मिलती-जुलती पोशाक पहनी हुई थी. उसके पैरों के पास एक छोटा सूटकेस रखा था.

घर को देखकर यह लग रहा था जैसे वहां सालों से कोई नहीं रहा है. फर्नीचर को चादरों से ढांका हुआ था. दीवार पर कोई घड़ी नहीं थी, कोई सजावटी सामान या बर्तन आदि भी नहीं थे. एक कोने में रखे हुए खोखे में पुराने फोटो और कांच का सामान रखा हुआ था.

“क्या तुम मेरा बैग कार में रख दोगे?” – वृद्धा ने कहा.

सूटकेस कार में रखने के बाद मैं वृद्धा की सहायता के लिए पहुंचा. मेरी बांह थामकर वह धीमे-धीमे कार तक गयी. उसने मुझे मदद के लिए धन्यवाद दिया.

“कोई बात नहीं” – मैंने कहा – “मैंने आपकी सहायता उसी तरह की जैसे मैं अपनी माँ की मदद करता.”

“तुम बहुत अच्छे आदमी हो” – उसने कहा और टैक्सी में मुझे एक पता देकर कहा – “क्या तुम डाउनटाउन की तरफ से चल सकते हो?”

“लेकिन वह तो लम्बा रास्ता है? – मैंने फ़ौरन कहा.

“मुझे कोई जल्दी नहीं है” – वृद्धा ने कहा – “मैं होस्पिस जा रही हूँ”.
(होस्पिस में मरणासन्न बूढ़े और रोगी व्यक्ति अपने अंतिम दिन काटते हैं.)

मैंने रियर-व्यू-मिरर में देखा. उसकी गीली आंखें चमक रहीं थीं.

“मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है” – उसने कहा – “डॉक्टर कहते हैं कि मेरा समय निकट है”.

मैंने मीटर बंद करके कहा – “आप जिस रास्ते से जाना चाहें मुझे बताते जाइए”.

अगले दो घंटे तक हम शहर की भूलभुलैया से गुज़रते रहे. उसने मुझे वह बिल्डिंग दिखाई जहाँ वह बहुत पहले लिफ्ट ऑपरेटर का काम करती थी. हम उस मोहल्ले से गुज़रे जहाँ वह अपने पति के साथ नव-ब्याहता बनकर आई थी. मुझे एक फर्नीचर शोरूम दिखाकर बताया कि दसियों साल पहले वहां एक बालरूम था जहाँ वह डांस करने जाती थी. कभी-कभी वह मुझे किसी ख़ास बिल्डिंग के सामने गाड़ी रोकने को कहती और अपनी नम आँखों से चुपचाप उस बिल्डिंग को निहारते रहती.

सुबह की लाली आसमान में छाने लगी. उसने अचानक कहा – “बस, अब और नहीं. मैं थक गयी हूँ. सीधे पते तक चलो”.

हम दोनों खामोश बैठे हुए उस पते तक चलते रहे जो उसने मुझे दिया था. यह पुराने टाइप की बिल्डिंग थी जिसमें ड्राइव-वे पोर्टिको तक जाता था. कार के वहां पहुँचते ही दो अर्दली आ गए. वे शायद हमारी प्रतीक्षा  कर रहे थे. मैंने ट्रंक खोलकर सूटकेस निकाला और उन्हें दे दिया. महिला तब तक व्हीलचेयर में बैठ चुकी थी.

“कितने रुपये हुए” – वृद्धा ने पर्स खोलते हुए पूछा.

“कुछ नहीं” – मैंने कहा.

“तुम्हारा कुछ तो बनता है” – वह बोली.

“सवारियां मिलती रहती हैं” – मैं बोला.

अनायास ही पता नहीं क्या हुआ और मैंने आगे बढ़कर वृद्धा को गले से लगा लिया. उन्होंने मुझे हौले से थाम लिया.

“तुमने एक अनजान वृद्धा को बिन मांगे ही थोड़ी सी ख़ुशी दे दी” – उसने कहा – “धन्यवाद”.

मैंने उनसे हाथ मिलाया और सुबह की मद्धम रोशनी में बाहर आ गया. मेरे पीछे एक दरवाज़ा बंद हुआ और उसके साथ ही एक ज़िंदगी भी ख़ामोशी में गुम हो गयी.

उस दिन मैंने कोई और सवारी नहीं ली. विचारों में खोया हुआ मैं निरुद्देश्य-सा फिरता रहा. मैं दिन भर चुप रहा और सोचता रहा कि मेरी जगह यदि कोई बेसब्र या झुंझलाने वाला ड्राईवर होता तो क्या होता? क्या होता अगर मैं बाहर से ही लौट जाता और उसके दरवाज़े तक नहीं जाता?

आज मैं उस घटनाक्रम पर निगाह डालता हूँ तो मुझे लगता है कि मैंने अपनी ज़िंदगी में उससे ज्यादा ज़रूरी और महत्वपूर्ण कोई दूसरा काम नहीं किया है.

हम लोगों में से अधिकांश जन यह सोचते हैं कि हमारी ज़िंदगी बहुत बड़ी-बड़ी बातों से चलती है. लेकिन ऐसे बहुत से छोटे दिखनेवाले असाधारण लम्हे भी हैं जो हमें खूबसूरती और ख़ामोशी से अपने आगोश में ले लेते हैं..!!

Source:- www.Hindizen.com

Saturday 11 May 2013

Muhajir Nama Collection 2


Muhajir hain magar ham ek duniya chor aaye hain,
tmhare paas jitna ha ham utna chor aye hain..!!

 Miyan kah karhamara gaon hamse baat krta tha,
zara socho to hum bhi kaisa ohda chor aaye hain..!!

 Ham hamne khawab dekha tha wo sachcha keu nai nikla
isi gam me kai aankhon ko bheega chor aaye hain..!!

 Khule maidan me sote hain jab to yaad aata hai,
ki ham aangan me apne ped bhuda chor aaye hain..!!

 Wo jauhar ho, shaheed ashfaq ho, chahe bhagat singh ho
ham apne sab shahheedon ko akela chor aaye hain..!!

 Khud apni dendari pe nidamat hone lagti hai
khayal aata h jab bhi ham musalla chor aaye hain..!!

 Jise zid karke hamne apne bachpan me kharida tha
yhahn ate hue han wo khilona chor aaye hain..!!

 Usi me bhai jumman Ram ka kirdar krte the
abhi tak yaad h jo Ramleela chor aaye hain..!!

 Na jane kaiSi aandhi thi ki sab kuch ud gya usme
ham apni raah takta gurudwara chor aaye hain..!!

Muhajir Nama Collection 1


Muhajir hain magar ham ek duniya chor aaye hain,
tmhare paas jitna ha ham utna chor aye hain..!!

Agar sach-much koi puche to usko kya batayeinge,
ki apni masjidon ko kyu akela chor aaye hain..!!

Jo pag-dandi hamare gaon se us gaon jati thi,
use sailaab k paani me behta chor aaye hain..!!

Hame apni taharat par hamesha naaz rehta tha,
magar ham dosti ko karke maila chor aaye hain..!!

Kadak lehje ki aadat ab ye majboori hai hamari,
yahan aate hue boli purabiya chor aaye hain..!!

Bichadte waqt dushwaar tha uska saamna krna,
so uske naam ka ham apna SANDESA chor aaye hain..!!

Chale to aaye hain khawaja ki basti chor kar lekin,
ham us chaukhat par sar rakh'kha ka rakh'kha chor aaye hain..!!

Yahan ham kisse rutheun kaun aayega manane ko,
mana leta tha jo hamko wo apna chor aaye hain..!!

Yahan aate hue pehron lipat kar jisse roye the,
ham apne ghar me wo deewar-e-giriya chor aaye hain..!!

Wo holi khelte bachche gale milte hue bude
muqaddas pyar k rango ko bhikra chor aaye hain..!!

MOHABBAT KI KASAM HUM, WAFA KAR RAHE HAIN..!!



MOHABBAT KI KASAM HUM, WAFA KAR RAHE HAIN
UNKI NAZAR MEIN SHAYAD ,KHATA KAR RAHE HAIN
RUTHE RUTHE SE HAIN WO MANAYEIN BHI TO KAISE
KHABAR HI NAHIN KYUN RUTHE HAIN WO HUMSE

MOHABBAT KI KASAM HUM, WAFA KAR RAHE HAIN
UNKI NAZAR MEIN SHAYAD ,KHATA KAR RAHE HAIN

PAL PAL MEIN EK PAL ISTARAH BHI AAYA
UNKE HI FIKR MEIN JEE MERA GHABRAYA
UNKE LIYE HAMESHA KHUDA SE,DUA KAR RAHE HAIN

MOHABBAT KI KASAM HUM, WAFA KAR RAHE HAIN
UNKI NAZAR MEIN SHAYAD ,KHATA KAR RAHE HAIN

JAB BHI KABHI KAHIN UNSE MULAKAAT HUI
HAAN SIRF SHIKWE SHIKAYATON KI BAAT HUI
KHAMOKHAN KYUN WO HUMSE,GILA KAR RAHE HAIN

MOHABBAT KI KASAM HUM, WAFA KAR RAHE HAIN
UNKI NAZAR MEIN SHAYAD ,KHATA KAR RAHE HAIN

DEKHTE HI WO HUMSE NAZREIN CHURATE HAIN
MERE KAREEB AANE PAR DOOR CHALEJATE HAIN
BE WAZAH WO MERE DIL PE,ZAFA KAR RAHE HAIN

MOHABBAT KI KASAM HUM, WAFA KAR RAHE HAIN
UNKI NAZAR MEIN SHAYAD ,KHATA KAR RAHE HAIN..!!

जो पत्थर तुमने मारा था मुझे नादान की तरह..!!


जो पत्थर तुमने मारा था मुझे नादान की तरह
उसी पत्थर को पूजा है किसी भगवान की तरह

तुम्हारी इन उँगलियों की छुअन मौजूद है उस पर
उसे महसूस करता हूँ किसी अहसान की तरह

उसी पत्थर में मिलती है तुम्हारी हर झलक मुझको
उसी से बात करता हूँ किसी इनसान की तरह

कभी जब डूबता हूँ मैं उदासी के समंदर में
तुम्हारी याद आती है किसी तूफ़ान की तरह

मेरी किस्मत में है दोस्त तुम्हारे हाथ का पत्थर
भूल जाना नहीं मुझे किसी अंजान की तरह..!!

बेमुरव्वत है मगर दिलबर है वो मेरे लिए..!!


बेमुरव्वत है मगर दिलबर है वो मेरे लिए
हीरे जैसा कीमती पत्थर है वो मेरे लिए

हर दफा उठकर झुकी उसकी नज़र तो यों लगा
प्यार के पैग़ाम का मंज़र है वो मेरे लिए

आईना उसने मेरा दरका दिया तो क्या हुआ
चाहतों का खूबसूरत घर है वो मेरे लिए

एक लम्हे के लिए खुदको भुलाया तो लगा
इस अंधेरी रात में रहबर है वो मेरे लिए

उसने तो मुझको जलाने की कसम खाई मगर
चिलचिलाती धूप में तरुवर है वो मेरे लिए

जिस्म छलनी कर दिया लेकिन मुझे लगता रहा
ज़िंदगी भर की दुआ का दर है वो मेरे लिए..!!

हर सितम हर ज़ुल्म जिसका आज तक सहते रहे..!!


हर सितम हर ज़ुल्म जिसका आज तक सहते रहे
हम उसी के वास्ते हर दिन दुआ करते रहे

दिल के हाथों आज भी मजबूर हैं तो क्या हुआ
मुश्किलों के दौर में हम हौसला रखते रहे

बादलों की बेवफ़ाई से हमें अब क्या गिला
हम पसीने से ज़मीं आबाद जो करते रहे

हमको अपने आप पर इतना भरोसा था कि हम
चैन खोकर भी हमेशा चैन से रहते रहे

चाँद सूरज को भी हमसे रश्क होता था कभी
इसलिए कि हम उजाला हर तरफ़ करते रहे

हमने दुनिया को बताया था वफ़ा क्या चीज़ है
आज जब पूछा गया तो आसमाँ तकते रहे

हम तो पत्थर हैं नहीं फिर पिघलते क्यों नहीं
भावनाओं की नदी में आज तक बहते रहे..!!

कहने को तो हम, खुश अब भी हैं..!!


कहने को तो हम, खुश अब भी हैं
हम तुम्हारे तब भी थे, हम तुम्हारे अब भी हैं

रूठने-मनाने के इस खेल में, हार गए हैं हम
हम तो रूठे तब ही थे, आप तो रूठे अब भी हैं

मेरी ख़ता बस इतनी है, तुम्हारा साथ चाहता हूँ
तब तो पास होके दूर थे, और दूरियाँ अब भी हैं

मुझसे रूठ के दूर हो, पर एहसास तो करो
प्यासे हम तब भी थे, प्यासे हम अब भी हैं

इस इंतज़ार में मेरा क्या होगा, तुम फिक्र मत करना
सुकून से हम तब भी थे, सुकून से हम अब भी हैं

बस थोड़ा रूठने के अंजाम से डरते हैं
डरते हम तब भी थे, डरते हम अब भी हैं

हमारी तमन्ना कुछ ज़्यादा नहीं थी, जो पूरी न होती
कम में गुज़ारा तब भी था, कम में गुज़ारते अब भी हैं

चलते हैं तीर दिल पे कितने, जब तुम रूठ जाते हो
ज़ख्मी हम तब भी थे, ज़ख्मी हम अब भी हैं

मेरी मासूमियत को तुम, ख़ता समझ बैठे हो
मासूम हम तब भी थे, मासूम हम अब भी हैं

आप हमसे रूठा न करें, बस यही इल्तिजा है
फ़रियादी हम तब भी थे, फ़रियादी हम अब भी हैं

तुम हो किस हाल में, कम से कम ये तो बता दो
बेखब़र हम तब भी थे, बेखब़र हम अब भी हैं..!!

तुम जो साथ हमारे होते..!!


तुम जो साथ हमारे होते
कितने हाथ हमारे होते

दूर पहुँच से होते जो भी
बिल्कुल पास हमारे होते

माफ़ सज़ाएँ होती रहतीं
कितने जुर्म हमारे होते

बँटती समझ बराबर सबको
ऐसे न बँटवारे होते

रार नहीं तकरार नहीं तो
कितने ख़्वाब सुनहरे होते

काजल से होती यारी तो
नैना ये कजरारे होते

कदम मिला कर हमसे चलते
तुम भी अपने प्यारे होते

मिर्च मसाले न होते तो
ऐसे न चटखारे होते

पैदा न मोबाइल होता
दुखी खूब हरकारे होते

सौदे न सरकारी होते
कैसे नोट डकारे होते..!!

Friday 10 May 2013

उदासी के समंदर को छुपाकर मन में रख लेना..!!


उदासी के समंदर को छुपाकर मन में रख लेना
किसी की बद्दुआओं को दुआ के धन में रख लेना

हज़ारों लोग मिलते हैं मगर क्या फ़र्क पड़ता है
निगाहों को जो भा जाए उसे दरपन में रख लेना

मुहब्बत रोग है दुनिया समझती है समझने दो
कलेजे से लगाकर तुम उसे धड़कन में रख लेना

पड़ोसी से छुपा लेना हँसी अपनी खुशी अपनी
नहीं तो पाँव खींचेगा इसी से मन में रख लेना

किसी भी बात पर तुमसे खफ़ा जब चाँद हो जाए
जलाकर एक नन्हा-सा दीया आँगन में रख लेना

वफ़ा की राह में "देवेंद्र" ज़माना आग जब उगले
दुआओं की तरह उस आग को दामन में रख लेना..!!

मुद्दत के बाद मोम की मूरत में ढल गया..!!


मुद्दत के बाद मोम की मूरत में ढल गया
मेरी वफ़ा की आँच में पत्थर पिघल गया

उसका सरापा हुस्न जो देखा तो यों लगा
जैसे अमा की रात में चंदा निकल गया

ख़ुशबू जो उसके हुस्न की गुज़री क़रीब से
मन भी मचल गया मेरा तन भी मचल गया

गुज़रे हुए लम्हात को भुलूँ तो किस तरह
यादों में रात ढल गई सूरज निकल गया

मIना उसी के नूर से रोशन है ज़िंदगी
उसका तसव्वुर ही मेरे शेरों में ढल गया..!!

मुझे पिला के ज़रा-सा क्या गया कोई..!!



















मुझे पिला के ज़रा-सा क्या गया कोई
मेरे नसीब को आकर जगा गया कोई

मेरे क़रीब से होकर गुज़र गई दुनिया
मेरी निगाह में लेकिन समा गया कोई

मेरी गली की हवाओं को क्या हुआ आख़िर
दर-ओ-दीवार को दुश्मन बना गया कोई

मेरे हिसाब में ज़ख़्मों का कोई हिसाब नहीं
मेरे हिसाब को आकर मिटा गया कोई

मेरी वफ़ा ने तो चाहा कि चुप रहूँ लेकिन
ज़रा-सी बात पर मुझको रुला गया कोई

ग़मों के दौर में दोस्त मेरी खुशी के लिए
किसी मज़ार पर चादर चढ़ा गया कोई..!!

जिनके दिल में गुबार रहते हैं..!!














जिनके दिल में गुबार रहते हैं
यार वो बादाख़्वार रहते हैं

कि जहाँ ओहदेदार रहते हैं
लोग उनके शिकार रहते हैं

पढ़ते लिखने में जो भी अव्वल थे
अब तो वो भी बेकार रहते हैं

मशवरा उनको कभी देना न
जो ज़हन से बीमार रहते हैं

किसी दौलत के ग़ार में देखो
वहाँ खुदगर्ज़ यार रहतै हैं

आजकल जिनके पास दौलत है
हुस्न के तल्बगार रहते हैं

किसी दफ़्तर के बड़े हाकिम ही
ऐश में गिरिफ़्तार रहते हैं..!!

अगरचे मोहब्बत जो धोखा रही है..!!














अगरचे मोहब्बत जो धोखा रही है
तो क्यों शमा इसकी हमेशा जली है

हमारे दिलों को वही अच्छे लगते
कि जिनके दिलों में मुहब्बत बसी है

मोहब्बत का दुश्मन ज़माना है लेकिन
सभी के दिलों में ये फूली फली है

बिठाते थे सबको ज़मीं पर जो ज़ालिम
वो हस्ती भी देखो ज़मीं में दबी है

सभी कीमतें आसमाँ चढ़ रहीं जब
तो इंसां की कीमत ज़मीं पे गिरी है

हो सच्ची लगन और इरादे जवाँ हों
तो मंज़िल हमेशा कदम पर झुकी है

ज़माने की चाहा था सूरत बदलना
मगर अपनी सूरत बदलनी पड़ी है..!!

ज़िंदगी अभिशाप भी, वरदान भी..!!














 ज़िंदगी अभिशाप भी, वरदान भी
ज़िंदगी दुख में पला अरमान भी
कर्ज़ साँसों का चुकाती जा रही
ज़िंदगी है मौत पर अहसान भी

वे जिन्हें सर पर उठाया वक्त ने
भावना की अनसुनी आवाज़ थे
बादलों में घर बसाने के लिए
चंद तिनके ले उड़े परवाज़ थे
दब गए इतिहास के पन्नों तले
तितलियों के पंख, नन्हीं जान भी

कौन करता याद अब उस दौर को
जब ग़रीबी भी कटी आराम से
गर्दिशों की मार को सहते हुए
लोग रिश्ता जोड़ बैठे राम से
राजसुख से प्रिय जिन्हें वनवास था
किस तरह के थे यहाँ इंसान भी।

आज सब कुछ है मगर हासिल नहीं
हर थकन के बाद मीठी नींद अब
हर कदम पर बोलियों की बेड़ियाँ
ज़िंदगी घुडदौड़ की मानिंद अब
आँख में आँसू नहीं काजल नहीं
होठ पर दिखती न वह मुस्कान भी।

Muhabbato'n Main Har Ik Lamha..!!
















Muhabbato'n Main Har Ik Lamha Visaal Ho Ga, Ye Tah Hua Tha!
Bichar Kar Bhi Ik Dusray ka Khayaal ho Ga, Ye Tah Hua Tha!

Juda Huay Hain To Kia Hua Hai, Yehi To Dastoor-e-Zindagi Hai!
Koi Bhi Rut Ho Na Chahato'n Ko Zawal Ho Ga, Ye Tah Hua Tha!

Ye Kia K Saansain Ukharr Gaeen Hain Aghaaz Hi Se Yaaro!
Koi Thak K Na Raastay Main Nidhaal Ho Ga, Ye Tah Hua Tha!

Aao K Faizan-e-Kashtiyo'n Ko Jala Dain Gumnaam Sahilo'n Par!
K Ab Yahan Se Na Waapsi Ka Sawaal Ho Ga, Ye Tah Hua Tha..!!

आंशु भर आते है आँखों में हर एक हशी के बाद..!!















आंशु भर आते है आँखों में हर एक हशी के बाद !
गम बन गया नशीब मेरा हर ख़ुशी के बाद !!

निकला था कारवा मोहब्बत की राह में !
हर मोर पे नफरत खरी थी हर गली के बाद !!

सोचा था प्यार का मैं संजोउगा गुलशन !
हर फूल जल गया मेरा बनकर कलि के बाद !!

चाहत की बेबसी का ये कैसा हैं इम्तिहान !
दिल ने ना सकू पाया कभी दिल लगाने के बाद !!

अब राख़ ही समेटता हूँ आशियाने की !
खुद ही जला दी थी जिसे आजादी के बाद !!

सुनते है बाद मरने के मिलता है सब सिला !
देखेगे क्या मिलेगा मुझे जिन्दगी के बाद !!

न जाने चाँद पूनम का, ये क्या जादू चलाता है..!!














न जाने चाँद पूनम का, ये क्या जादू चलाता है
कि पागल हो रही लहरें, समुंदर कसमसाता है

हमारी हर कहानी में, तुम्हारा नाम आता है
ये सबको कैसे समझाएँ कि तुमसे कैसा नाता है

ज़रा सी परवरिश भी चाहिए, हर एक रिश्ते को
अगर सींचा नहीं जाए तो पौधा सूख जाता है

ये मेरे और ग़म के बीच में क़िस्सा है बरसों से
मै उसको आज़माता हूँ, वो मुझको आज़माता है

जिसे चींटी से लेकर चाँद सूरज सब सिखाया था
वही बेटा बड़ा होकर, सबक़ मुझको पढ़ाता है

नहीं है बेईमानी गर ये बादल की तो फिर क्या है
मरुस्थल छोड़कर, जाने कहाँ पानी गिराता है

पता अनजान के किरदार का भी पल में चलता है
कि लहजा गुफ्तगू का भेद सारे खोल जाता है

ख़ुदा का खेल ये अब तक नहीं समझे कि वो हमको
बनाकर क्यों मिटाता है, मिटाकर क्यूँ बनाता है

वो बरसों बाद आकर कह गया फिर जल्दी आने को
पता माँ-बाप को भी है, वो कितनी जल्दी आता है..!!

कोई आँसू बहाता है, कोई खुशियाँ मनाता है..!!














कोई आँसू बहाता है, कोई खुशियाँ मनाता है
ये सारा खेल उसका है, वही सब को नचाता है।

बहुत से ख़्वाब लेकर के, वो आया इस शहर में था
मगर दो जून की रोटी, बमुश्किल ही जुटाता है।

घड़ी संकट की हो या फिर कोई मुश्किल बला भी हो
ये मन भी खूब है, रह रह के, उम्मीदें बँधाता है।

मेरी दुनिया में है कुछ इस तरह से उसका आना भी
घटा सावन की या खुशबू का झोंका जैसे आता है।

बहे कोई हवा पर उसने जो सीखा बुज़ुर्गों से
उन्हीं रस्मों रिवाजों, को अभी तक वो निभाता है।

किसी को ताज मिलता है, किसी को मौत मिलती है
ये देखें, प्यार में, मेरा मुकद्दर क्या दिखाता है।

Thursday 9 May 2013

चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया,,!!














चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया
पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया

जागा रहा तो मैंने नए काम कर लिए
ऐ नींद आज तेरे न आने का शुक्रिया

सूखा पुराना जख्म नए को जगह मिली
स्वागत नए का और पुराने का शुक्रिया

आती न तुम तो क्यों मैं बनाता ये सीढ़ियाँ
दीवारों, मेरी राह में आने का शुक्रिया

आँसू-सा माँ की गोद में आकर सिमट गया
नजरों से अपनी मुझको गिराने का शुक्रिया

अब यह हुआ कि दुनिया ही लगती है मुझको घर
यूँ मेरे घर में आग लगाने का शुक्रिया

गम मिलते हैं तो और निखरती है शायरी
यह बात है तो सारे जमाने का शुक्रिया

अब मुझको आ गए हैं मनाने के सब हुनर
यूँ मुझसे `कुँअर’ रूठ के जाने का शुक्रिया..!!

जब भी होता है तेरा जिक्र कहीं बातों में..!!















जब भी होता है तेरा जिक्र कहीं बातों में
लगे जुगनू से चमकते हैं सियाह रातों में

खूब हालात के सूरज ने तपाया मुझको
चैन पाया है तेरी याद की बरसातों में

रूबरू होके हक़ीक़त से मिलाओ आँखें
खो ना जाना कहीं जज़्बात की बारातों में

झूठ के सर पे कभी ताज सजाकर देखो
सच ओ ईमान को पाओगे हवालातों में

आज के दौर के इंसान की तारीफ़ करो
जो जिया करता है बिगड़े हुए हालातों में

आप दुश्मन क्यों तलाशें कहीं बाहर जाकर
सारे मौजूद जब अपने ही रिश्ते नातों में

सबसे दिलचस्प घड़ी पहले मिलन की होती
फिर तो दोहराव है बाकी की मुलाक़ातों में

गीत भँवरों के सुनो किससे कहूँ मैं नीरज
जिसको देखूँ वो है मशगूल बही खातों में..!!