Saturday 17 September 2011

सिंकदर का मकबरा..!!


जिस तरह से आज तक यह पता नहीं चल पाया कि आखिर सिंकदर महान की मृत्यु इतनी छोटी उम्र में कैसे हो गयी थी, ठीक वैसे ही आज तक सिकंदर के मकबरे का भी पता नहीं चल पाया है। हद तो यह है कि सिकंदर की मृत्यु को लेकर तथ्य और मिथक आपस में मिल गए हैं। इस तरह के मिथक पहले यूनान व रोमन काल में गढ़े गए फिर इनमें ईसाई धर्म के आने के साथ व बाद में अरबों द्वारा तमाम जगहों पर हमला कर उस जगह को जीतने के साथ अन्य किस्से कहानियां भी सिकंदर की मृत्यु व उसके मकबरे के साथ जुड़ती रही।

सिकंदर के अंतिम संस्कार से जुड़ी हर चीज आज विवादों में घिरी है। इतिहासकार डायोडोरस सिकुलस के अनुसार सिकंदर की मृत्यु के बाद उसके शरीर पर लेप लगा, उसे संरक्षित किया गया व दो वर्ष पश्चात अंतिम यात्रा मिस्र की आ॓र चल पड़ी। फिलिप अरहाइडियस जो फिलिप द्वितीय का मंदबुद्धि पुत्र था व जिसे मक्दूनिया की सेना ने सिकंदर का उत्तराधिकारी चुना था पर ही यात्रा व अंतिम संस्कार का पूरा जिम्मा डाला गया। तो क्या सीनाह का नखलिस्तान ही सिकंदर का अंतिम विश्राम स्थल था? यही वह स्थान था, जहां कुछ वर्ष पूर्व यह घोषणा की गयी थी कि सिकंदर देवताओं का पुत्र है। हो सकता है कि टोलमी लेगास (सन 337-383) जो सिकंदर के बाद मिस्र का शासक बना और जो सिकंदर का सेनापति था, ने ही यह चाहा कि सिकंदर को सिकंदरिया (मिस्र का एक नगर) में ही दफनाया जाए क्योंकि सिकंदर के पसंदीदा भविष्यवक्ता आरिसटेन्हर ने कहा था कि जिस देश में भी सिकंदर का शव दफनाया जाएगा वह शहर या देश दुनिया का सबसे सम्पन्न देश बनेगा।

यह भी कहा जाता है कि जब शव यात्रा सीरिया पहुंची तब परडिकास ने सेना भेज शवयात्रा का मुख्य मक्दूनिया के शहर आईगई की आ॓र मोड़ दिया। यहां पर युद्ध भी हुआ व यह संभव है कि 1886 में सिडान नाम के स्थान पर सफेद संगमरमर का ताबूत (सारकोफेगस) इसी युद्ध में मारे गये किसी योद्धा का रहा होगा। इस ताबूत में शायद टोलमोन का शव रखा गया होगा, जिसे परडिकास ने भेजी गयी सेना का सेनापति बनाया था पर सिकंदर के शव को कब्जे में करने के लिए हुए युद्ध में वह मारा गया। आज इस ताबूत को तुर्की की राजधानी के संग्रहालय में देखा जा सकता है। डायोडोरस के अनुसार शव जिस गाड़ी में रखा था, उसे हाथों से खींचकर मेम्फिस होते हुए सिकंदरिया लाया गया। 18वीं शताब्दी डायोडोरस के इसी वृतांत को पढ़कर एक फ्रांसीसी चित्रकार कोम्प्ले के केल्यू ने एक चित्र भी तैयार किया था। आने वाली पीढ़ियों के लिए सिंकदर की मृत्यु व उसका मकबरा दोनों ही मिथक बन गये व सिकंदर से जुड़ी यह बातें उन देशों तक भी पहुंची जहां वो कभी नहीं गया था।

स्ट्रावो, प्लूटार्क व पोसनियस जैसे प्राचीन लेखकों के अनुसार सिकंदरिया में ही सिकंदर का शव एक मकबरे, जिसे सोमा या सीमा कहा जाता था, में दफनाया गया। यह भी माना जाता है कि सिकंदर का ताबूत सोने का बना होगा व मकबरा भी काफी बड़ा तथा सुंदर रहा होगा। क्या सोमा या सीमा को सिकंदरिया के नक्शे पर देखा जा सकता है ? कुछ पुरातत्वविदों के अनुसार होरिया तथा नवी डेनियल सड़कें जहां एक दूसरे को काटती हैं, वहीं पर सोमा या सीमा है। वैसे यह भी सत्य है कि टोल्मी तथा रोमनकालीन सिकंदरिया की फोटोग्राफी (स्थलाकृति) के बारे में आज भी ज्यादा पता नहीं है। उन्नीसवीं शताब्दी में आधुनिक सिकंदरिया शहर को बसाया गया व प्राचीन शहर इसी आधुनिक शहर के नीचे दफन है। 1865 तक जब महमूद बे अल फलाकी को खेदाइल इस्माइल ने प्राचीन शहर का नक्शा तैयार करने को कहा उस समय तक यहां पर ठीक ठाक व पूरी तरह विश्वसनीय पुरातात्विक खुदाई तक नहीं की गयी थी। 1866 में नक्शा तैयार हो गया व इसमें विशाल खंडहरों को भी दर्शाया गया था पर 1882 के बाद जब यहां शहरीकरण ने जोर पकड़ा तो यह खंडहर भी समाप्त हो गए।

बाद में पुरातत्वविदों ने जो खुदाई की उसमें प्राचीन सड़कें व इमारतों के अवशेष नजर आये। 1960 में पुरातत्वविदों ने कोम अल डिक नाम के टीले के आसपास खुदाई शुरू की व उन्हें यहां यूनानी तथा रोमन घर तो मिले ही पूर्व में रोमन थियेटर भी मिला। यहां कई स्नानघर, नालियां, दो दफनाएं जाने के स्थल, प्राचीन इस्लामी घर भी नजर आये। महमूद बे अल फलाकी ने सिकंदर के मकबरे को शहर (सिकंदरिया) के मध्य में बताया था यानी वाया केनोपिका व आर-5 नाम के प्राचीन सड़कें जहां एक दूसरे को काटती थीं वहां पर। यह जगह नबी डेनियल के पूजास्थल के पास थी। यह जरूर था कि इस जगह की गयी खुदाई में किसी प्रकार का कोई मकबरा नहीं मिला।

उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पुरातत्वविद शलाईमॉन ने नबी डेनियल के पूजास्थल पर खुदाई की इजाजत मांगी और रामलेह के पास खुदाई में उन्हें टोलमी राजवंश का एक दफन स्थल मिला। शलाईमान का मानना था कि सोमा नबी डेनियल पूजास्थल के पास ही हो सकता है पर शलाईमान को कभी भी खुदाई की इजाजत नहीं मिली। बीसवीं शताब्दी तक तमाम पुरातत्वविद यहां के आसपास खुदाई करते रहे। 1953 में जब मिस्र के राजवंश का सफाया हो गया तब 1960 में पोलैण्ड के पुरातत्वविदों ने यहां खुदाई की। यहां अरब कालीन तमाम कब्रें, कई इमारतें व रोमन स्नानघर मिले पर सिकंदर का मकबरा नहीं मिला। रोमन थियेटर के पास सिकंदर का संगमरमर से बना चेहरा मिला।
आज भी यह पता नहीं चल पाया है कि आखिर सिकंदर को कहां दफनाया (या जलाया) गया था। 11 जून सन 323 ई.पू. को दोपहर बाद सिकंदर का देहान्त हो गया था पर करीब सवा दो हजार साल बीत जाने के बाद भी यह पता नहीं चल पाया है कि आखिर वह कहां दफनाया गया था हालांकि खोज लगातार जारी है, हो सकता है मकबरा कुछ समय बाद सामने आये।

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