बहुत पुरानी बात है. जापान में लोग बांस की खपच्चियों और कागज़ से बनी लालटेन इस्तेमाल करते थे जिसके भीतर जलता हुआ दिया रखा जाता था.
एक शाम एक अँधा व्यक्ति अपने एक मित्र से मिलने उसके घर गया. रात को वापस लौटते समय उसके मित्र ने उसे साथ में लालटेन ले जाने के लिए कहा.
“मुझे लालटेन की ज़रुरत नहीं है”, अंधे व्यक्ति ने कहा, “उजाला हो या अँधेरा, दोनों मेरे लिए एक ही हैं”.
“मैं जानता हूँ कि तुम्हें राह जानने के लिए लालटेन की ज़रुरत नहीं है”, उसके मित्र ने कहा, “लेकिन तुम लालटेन साथ लेकर चलोगे तो कोई राह चलता तुमसे नहीं टकराएगा. इसलिए तुम इसे ले जाओ”.
अँधा व्यक्ति लालटेन लेकर निकला और वह अभी बहुत दूर नहीं चला था कि कोई राहगीर उससे टकरा गया.
“देखकर चला करो!”, उसने राहगीर से कहा, “क्या तुम्हें यह लालटेन नहीं दिखती?”
“तुम्हारी लालटेन बुझी हुई है, भाई”, अजनबी ने कहा.
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