Monday 10 February 2014

चाँदनी को क्या हुआ कि आग बरसाने लगी..!!


चाँदनी को क्या हुआ कि आग बरसाने लगी
झुरमुटों को छोड़कर चिड़िया कहीं जाने लगी

पेड़ अब सहमे हुए हैं देखकर कुल्हाड़ियाँ
आज तो छाया भी उनकी डर से घबराने लगी

जिस नदी के तीर पर बैठा किए थे हम कभी
उस नदी की हर लहर अब तो सितम ढाने लगी

वादियों में जान का ख़तरा बढ़ा जब से बहुत
अब तो वहाँ पुरवाई भी जाने से कतराने लगी

जिस जगह चौपाल सजती थी अंधेरा है वहाँ
इसलिए कि मौत बनकर रात जो आने लगी

जिस जगह कभी किलकारियों का था हुजूम
आज देखो उस जगह भी मुर्दनी छाने लगी..!!

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