Thursday 28 August 2014

पेंचकस..!!

इस घटना का ज़िक्र पाउलो कोएलो ने अपने ब्लॉग में किया है:

अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले मेरे श्वसुर ने अपने पूरे परिवार को बुलाया.
वे बोले, “मैं यह मानता हूँ कि मृत्यु हमारे लिए दूसरी दुनिया में प्रवेश करने का मार्ग है. मेरे चले जाने के बाद मैं तुम्हें एक संकेत भेजूंगा कि दूसरों के भले के लिए काम करते रहना ही जीवन का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य है”.
उनकी इच्छा के अनुसार उनका दाह-संस्कार किया गया और उनकी अस्थियों को अर्पोआदार के समुद्रतट पर बिखेर दिया गया. पार्श्व में उनका पसंदीदा संगीत टेप-रिकॉर्डर पर बजता रहा.

अपने परिवार को संबोधित करने के दो दिन के बाद वे चल बसे. एक मित्र ने साओ पाउलो में उनकी अंतिम क्रिया की व्यवस्था की. रियो में वापसी पर हम अस्थिपात्र, संगीत के कैसेट, और टेप-रिकॉर्डर लेकर सीधे समुद्रतट पर गए. वहां पहुँचने पर एक मुश्किल खड़ी हो गयी. अस्थिपात्र के ढक्कन को कई पेंच लगाकर मजबूती से बंद किया हुआ था. हम उसे खोल नहीं पा रहे थे.

वहां मदद के लिए कोई नहीं था. पास मौजूद एक भिखारी हमारी उलझन देखकर हमारे पास आया और उसने पूछा, “कोई परेशानी है क्या?”
मेरे श्याले ने कहा, “मेरे पिता की अस्थियाँ इसमें बंद हैं और हमारे पास इसे खोलने के लिए पेंचकस नहीं है”.
“आपके पिता यकीनन बहुत अच्छे आदमी रहे होंगे, क्योंकि मेरे पास यह है”, उसने अपने झोले में हाथ डाला और एक पेंचकस निकालकर दिया.

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