क्या होता है ये बताएँगे किसी रोज,
कमाल की ग़ज़ल तुमको सुनाएंगे किसी रोज,
थी उन की जिद के मैं जाऊं उनको मनाने,
मुझे ये वहम था कि वो बुलाएँगे किसी रोज,
मैंने कभी सोचा भी नहीं था ऐसा कि,
मेरे दिल को वो इतना दुखायेंगे किसी रोज,
उड़ने दो इन परिंदों को आजाद फिजाओं में,
गर होंगे तुम्हारे तो लौट के आएंगे किसी रोज..!!
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