Saturday 17 September 2011

सोने का शहर


रावण की सोने की लंका के बारे में तमाम कहानियां सुनी होगी, वहीं पूरी दुनिया में एक ऐसी मिथकीय जगह की तमाम कहानियां फैली हैं, जहां चारों आ॓र सोना ही सोना बिखरा है। इस जगह को नाम दिया गया है ‘अल डोराडो’ स्पेनी भाषा में सोने से बना या मढ़ा हुआ। सैकड़ों वर्षों से लोग इस जगह की खोज में लगे रहे हैं। कुछ ने तो अपनी पूरी जिंदगी इस जगह को खोजने में लगा दी। कहते हैं अल डोराडो की कथा उस कहानी से शुरू हुई जिसमें कहा गया था कि एक दक्षिण अमेरिकी कबीले का मुखिया स्वयं को सोने की धूल से लपेट लेता था, उसे देख ऐसा प्रतीत होता था मानो वे सोने का ही बना हो। १५३० के आसपास आज के कोलंबिया में स्पेनी आक्रमणकारी गोन्जालो जिमेनेज डे केसाडा ने १५३७ में म्युस्का (आज के कोलंबिया का कनडीनामार्का तथा बोयाका पहाड़ी क्षेत्र) में यहां की पुरानी परंपरा देखी। इसी परंपरा को देखने के बाद अल डोराडो (सुनहरा आदमी) अल इण्डियो डोराडो (दी गोल्डेन इंडियन), अल रे डोराडो (दी गोल्डेन किंग) आदि मिथक तेजी से सामने आये व अल डोराडो गोल्डेन किंग का राज्य था फिर शहर के रूप में जाना जाने लगा। इसी मशहूर सोने के शहर की तलाश में १५४१ में स्पेनी खोजी फ्रांसिस्को आ॓रीलाना तथा गोन्जालो पिजारे दक्षिण अमेरिका की आ॓र चल पड़े।

एक अन्य स्पेनी जुआन रोड्रिगे फ्रेयाइल ने एक लेख ‘अल कारनेरो’ में लिखा है कि म्युस्किा का मुख्य पादरी या सम्राट को एक धार्मिक अनुष्ठान के चलते सोने की धूल से पूरी तरह ढक दिया जाता था यानी उसके पूरे शरीर में सोने की धूल मल दी जाती थी व यह धार्मिक अनुष्ठान गुआटाविटा झील (आज के शहर बोगोटा के निकट) के पास हुआ था। 1636 में जुआन रोड्रिगे फ्रेयाइल ने अपने गवर्नर दोस्त डॉन जुआन को पत्र में लिखा ‘नये राजा के राज्याभिषेक के मौके पर यह अनुष्ठान हुआ। गद्दी पर बैठने से पहले राजा ने कुछ समय एकांत में गुफा में बिताया जहां उसके आसपास स्रियां भी नहीं थी, न उसको नमक का प्रयोग करना था न ही मिर्च आदि का न ही सूर्य की रोशनी में गुफा से बाहर आना था, पहले उसे विशाल गुआटाविटा झील तक ले जाया गया ताकि वे उस शैतान को भेट चढ़ा सके व बलि दे सके जिसे वह अपना देवता या भगवान मानते हैं। अनुष्ठान के दौरान सेवकों ने जलबेंत (सरपत) से नौका तैयार की, जिसे कीमती व सुंदर चीजों से सजाया गया। इसमें अंगीठी भी रखी गयी व इसमें खुशबूदार धूपबत्ती जला दी गयी। झील काफी बड़ी व गहरी थी व इसमें विशाल जहाज भी तैर सकता था। तट पर भी कई अंगीठियां जलायी गयी ताकि धुएं से दिन की रोशनी छुप जाये। इसके बाद राजा के कपड़े उतार उसके शरीर पर कोई चिपचिपा पदार्थ लगाया गया फिर शरीर पर सोने का चूर्ण लगाया गया जिससे राजा का पूरा शरीर ढक गया। इसके उपरान्त राजा को नाव में बिठाया गया व राजा के पावों के पास सोने व पन्नों के ढेर रखे गये ताकि वह इन्हें अपने देवता को चढ़ा सके। राजा के साथ नाव में उसके चार प्रमुख मंत्री भी थे जो परो, मुकुट, कड़ों व हारों से लदे थे। यह सभी आभूषण सोने के बने थे। यह चारों भी नग्न थे व जैसे ही नाव झील के बीच में पहुंची सभी ने स्वर्ण को झील में फेंक दिया। फिर नाव तट तक आयी और ढोल, नगाड़े बजने लगे व इसी के साथ इन लोगों को नया राजा मिल गया।

ऐसा माना जाता है कि म्यूसिका में झील के आसपास कई कबीले ऐसे अनुष्ठान करते होंगे। म्यूसिका व इसके जैसे अन्य शहरों व प्रांतों के बारे में जब स्पेनी आक्रमणकारियों ने सुना तो वे हजारों मील की समुद्री यात्रा कर यहां आ धमके। यहां उन्हें राजा व अन्य रईसों के पास से काफी सोना वगैरह तो मिला पर न उन्हें सोने से बने ऐसे शहर दिखे जहां मकान ही सोने से बने हों न ही ऐसी सोने की खदानें जहां सोना भरा हो, क्योंकि इन प्रांतों में सोना व्यापार से कमाया गया था। इसके बाद स्पेनियों का विश्वास अल डोराडो पर एक बार फिर से जम गया क्योंकि अल डोराडो की कहानियां उन लोगों से सुनने लगे, जिन्हें इन्होंने बंदी बनाया था। 1580 के आसपास तो स्पेनियों ने सोना पाने की चाह में पूरी झील का पानी पहाड़ी को काटकर दूसरी आ॓र निकाल देने की भी सोची। इस प्रयास के चक्कर में पहाड़ी का काटा गया हिस्सा आज भी देखा जा सकता है। जल्द ही अल डोराडो के मिथक में तमाम अन्य किस्से भी जुड़े व कई सौ वर्षों तक लोग यह मानते रहे कि एक ऐसा शहर है, जहां हजारों हजार टन सोना है। अल डोराडो की खोज में सबसे प्रसिद्ध नाम है, फ्रांसिस्को डी आ॓रीलाना तथा गोन्जालो पिजारो (1541) का जो सोने के लालच में दक्षिण अमेरिका आए। अन्य मशहूर लोग जो सोना पाने की चाह में यहां पहुंचे वे थे फिलिप वॉन हट्टन (1541-45) जो वेनेजुएला पहुंचा तथा गोन्जालो जिमेनेज डी केसाडा जो 1549 में आया। सर वाल्टर रेले, जिन्होंने 1595 में पुन: खोज शुरू की, ने अल डोराडो को ऐसा शहर बताया है जो गुईआना में आ॓रीनोको तक फैला था। इस शहर को अंग्रेजों द्वारा बनाये नक्शों में भी दिखाया जाने लगा। बाद में इन्हें मिथकीय मानकर इनका नामोनिशान नक्शे से मिटा दिया गया। हद तो यह है कि एक सैनिक ने यह बात तक उड़ा दी कि 1531 में जहाज के डूबने के बाद उसे अलडोराडो नाम के शहर के लोगों ने ही बचाया और इस शहर में रखा भी।
आज अल डोराडो उस शहर को कह देते हैं जहां पर काफी सम्पन्नता है। मशहूर कवि मिल्टन ने ‘पेराडाइज लास्ट’ में इसका जिक्र किया है। आज ‘होली ग्रेल’ (जीसस का पवित्र प्याला), पारस पत्थर आदि की तरह अल डोराडो भी किस्सों का हिस्सा भर रह गया है क्योंकि लाखों प्रयास के बाद भी ऐसा कोई शहर नहीं मिलता जहां चारों आ॓र हर चीज सोने की बनी हो।

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