Monday 10 June 2013

बदल बदल के भी दुनिया को हम बदलते क्या..!!


बदल बदल के भी दुनिया को हम बदलते क्या
गढ़े हुये थे जो मुर्दे वो उठ के चलते क्या

डगर दिखाने गये थे नगर जला आये
हवस के शोले दियों की तरह से जलते क्या

तरक़्क़ियों के के तमाशों ने मार डाला हमें
अनाज़ उगता नहीं ख़ाक ही निगलते क्या

हलाल हो के भी हमसे यक़ीन छूटा नहीं
झुलस चुका था जो तन उस से बाल उचलते क्या

हरिक सवाल ज़रूरी हरिक ज़वाब अहम
“हम आ चुके थे क़रीब इतने बच निकलते क्या”..!!

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