Monday 10 June 2013

अब न आयेगी बेटियां..!!



बेटियों पे कब तलक बस यूँ ही लिखते जाओगे,
कब हकीकत की जमीं पर आ के उन्हें बचाओगे…

क्यों नहीं उठते हाथ और क्यों न करते सर कलम,
और कितनी दामिनीयों के लिए मोमबतियां जलाओगे…

आज कहते हो की प्यारी होती है सब बेटियां,
खुद मगर कब बेटों की चाह से निजात पाओगे…

जानवर से इंसान बना और फिर भी रहा जानवर,
जिस्म मानव का है पर कब इंसानी रूह लाओगे…

छु रही है आसमां आज की सब लड़कियां,
इस जमीं को कब उसके चलने लायक बनाओगे…

देखो क्या उसूल है मुजरिम की भी होती पैरवी ,
ऐसे माहौल में तो बस मुजरिम बढ़ाते जाओगे…

निकली थी बेख़ौफ़ सी घर से वोह जीने जिंदगी,
लुट गयी अब कैसे उसे जीने की राह दिखाओगे…

अपनी बेटी बेटी है, औरों  की बेटी माल है,
कब तलक ये दोहरा चेहरा अपनों से छुपाओगे…

अब न आयेगी कभी इस जमीं पर बेटियां,
अपनेपन ममता को एक दिन तरस जाओगे..!!

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