Monday 24 June 2013

महाभारत का युद्ध..!!



महाभारत का युद्ध निश्चिsत हो जाने पर कुन्ती व्याकुल हो उठीं। वह नहीं चाहती थीं कि कर्ण का पाण्डवों के साथ युद्ध हो। वे कर्ण को समझाने के लिए कर्ण के पास गयीं। कुन्ती को देखकर कर्ण उनके सम्मान में उठ खड़े हुये और बोले,'आप पहली बार आई हैं अतः आप इस 'राधेय' का प्रणाम स्वीकार करें।' कर्ण की बातों को सुन कुन्ती का हृदय व्यथित हो गया और उन्होंने कहा,'पुत्र! तुम 'राधेय' नहीं 'कौन्तेय' हो। मैं ही तुम्हारी माँ हूँ किन्तु लोकाचार के भय से मैंने तुम्हें त्याग दिया था। तुम पाण्डवों के ज्येष्ठ भ्राता हो। इसलिये इस युद्ध में तुम्हें कौरवों के साथ नहीं वरन अपने भाइयों के साथ रहना चाहिये। मैं नहीं चाहती कि भाइयों में परस्पर युद्ध हो। मैं चाहती हूँ कि तुम पाण्डवों के पक्ष में रहो। ज्येष्ठ भ्राता होने के कारण पाण्डवों के राज्य के तुम अधिकारी हो। मेरी इच्छा है कि युद्ध जीतकर तुम राजा बनो।'
कर्ण ने जबाव दिया,'हे माता! आपने मुझे त्याग था, क्षत्रियों के उत्तम कुल में जन्म लेकर भी मैं सूतपुत्र कहलाता हूँ। क्षत्रिय होकर भी सूतपुत्र कहलाने के कारण द्रोणाचार्य ने मेरा गुरु बनना स्वीकार नहीं किया। युवराज दुर्योधन ही मेरे सच्चे मित्र हैं। मैं उनके उपकार को भूल कर कृतघ्न नहीं बन सकता। किन्तु आपका मेरे पास आना व्यर्थ नहीं जायेगा क्योंकि आज तक कर्ण के पास से ख़ाली हाथ कभी कोई नहीं गया है। मैं आपको वचन देता हूँ कि मैं अर्जुन के सिवाय आपके किसी पुत्र परअस्त्र शस्त्र का प्रयोग नहीं करूँगा। मेरा और अर्जुन का युद्ध अवश्यम्भावी है और उस युद्ध में हम दोनों में से एक की मृत्यु निश्चिपत है। मेरी प्रतिज्ञा है कि आप पाँच पुत्रों की ही माता बनी रहेंगी।'कर्ण की बात सुनकर तथा उन्हें आशीर्वाद देकर कुन्ती व्यथित हृदय लेकर लौट आईं।

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