रोज की तरह दफ़्तर जाते समय जब मैं
मालरोड पहुंचा तो लोगों की भारी भीड़ देख ठिठक गया। नजदीक जा कर देखा तो एक
सिपाही और कुछ व्यक्ति खून से लथपथ हुए एक व्यक्ति को हाथों पैरों से उठा
कर एक तरफ कर रहे थे।
"ये तो खत्म हो गया लगता है ।" एक बूढ़ी औरत कह रही थी।
"ये तो खत्म हो गया लगता है ।" एक बूढ़ी औरत कह रही थी।
"सिर
पर गहरी चोट लगी है शायद। कसूर इसका ही था, मैंने खुद देखा है, भला-चंगा
जा रहा था, बस भी तेज नहीं थी, इसने अपनी साइकिल अचानक बस की ओर घुमा दी
थी।" पास खड़ा एक और व्यक्ति बोला।
"अरे यार ये तो दीवान है, अपने दफ़्तर का फोरमैन, इसने तो परसों रिटायर होना था, यह तो बहुत बुरा हुआ। अभी तो इसके लडक़े भी कुंवारे हैं ।" पास में खड़े मेरे दोस्त के मुंह से दीवान का नाम सुन कर मैं जैसे सुन्न हो गया।
मुझे याद आया, अभी परसों शाम तो ये घर आया था, अपने बेटे की नौकरी की बात कर रहा था। मैंने उसे बताया था कि डिपार्टमैंट की तरफ से लडक़े को देने का कोटा खत्म कर दिया गया है। बस मौत हो जाने की सूरत में ही एक बच्चे को नौकरी मिल सकती है।
मेरी बात सुन कर वो उठा और चला गया था। उसके चेहरे की उस अन्जानी सी खुशी का राज मुझे अब समझ आ रहा था।
"अरे यार ये तो दीवान है, अपने दफ़्तर का फोरमैन, इसने तो परसों रिटायर होना था, यह तो बहुत बुरा हुआ। अभी तो इसके लडक़े भी कुंवारे हैं ।" पास में खड़े मेरे दोस्त के मुंह से दीवान का नाम सुन कर मैं जैसे सुन्न हो गया।
मुझे याद आया, अभी परसों शाम तो ये घर आया था, अपने बेटे की नौकरी की बात कर रहा था। मैंने उसे बताया था कि डिपार्टमैंट की तरफ से लडक़े को देने का कोटा खत्म कर दिया गया है। बस मौत हो जाने की सूरत में ही एक बच्चे को नौकरी मिल सकती है।
मेरी बात सुन कर वो उठा और चला गया था। उसके चेहरे की उस अन्जानी सी खुशी का राज मुझे अब समझ आ रहा था।
- रंजीत सिंह
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