Sunday 28 September 2014

कैसे-कैसे लोग हमारे जी को जलाने आ जाते हैं..!!

 कैसे-कैसे लोग हमारे जी को जलाने आ जाते हैं,
अपने-अपने ग़म के फ़साने हमें सुनाने आ जाते हैं।

मेरे लिए ये ग़ैर हैं और मैं इनके लिए बेगाना हूँ
फिर एक रस्म-ए-जहाँ है जिसे निभाने आ जाते हैं।

इनसे अलग मैं रह नहीं सकता इस बेदर्द ज़माने में
मेरी ये मजबूरी मुझको याद दिलाने आ जाते हैं।

सबकी सुनकर चुप रहते हैं, दिल की बात नहीं कहते
आते-आते जीने के भी लाख बहाने आ जाते हैं..!!

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