अक्सर वो ही बातें बा_रहां दोहराईं हैं मैंने
मिटा मिटा कर तेरी तस्वीरें बनाईं है मैंने,
जिस हंसीं फरेब से ता_उम्र तौबा किया था
फिर वो ही गज़लें आज महफिल मे गाईं हैं मैंने,
मेरी आँखों के अब कोई सागर ना लुटे
बहुत टूट हूँ तब ये नदियाँ बहाईं है मैंने,
मेरी आदत में नही था यारों दर्द रोना
बहुत बेबस में ये मजबूरियाँ सुनाई है,
मैंने मुद्दतों बाद फिर हँसते देखा है उनको
उनकी तकलीफें आज ख़ुदा को बातईं है मैंने,
फिर जीने की दिल को हसरत सी हुई है
एक बार फिर कमजोरियाँ जताईं है मैंने..!!
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