थकन को ओढ़ कर बिस्तर में जाके लेट गए
हम अपनी कब्र -ऐ -मुक़र्रर में जाके लेट गए,
तमाम उम्र हम एक दुसरे से लड़ते रहे
मगर मरे तो बराबर में जाके लेट गए,
हमारी तश्ना नसीबी का हाल मत पुछो
वो प्यास थी के समुन्दर में जाके लेट गए,
न जाने कैसी थकन थी कभी नहीं उतरी
चले जो घर से तो दफ्तर में जाके लेट गए,
ये बेवक़ूफ़ उन्हे मौत से डराते हैं
जो खुद ही साया -ऐ -खंजर में जाके लेट गए,
तमाम उम्र जो निकले न थे हवेली से
वो एक गुम्बद -ऐ -बेदर में जाके लेट गए,
सजाये फिरते थे झूठी अना को चेहरे पर
वो लोग कसर -ऐ -सिकंदर में जाके लेट गए..!!
हम अपनी कब्र -ऐ -मुक़र्रर में जाके लेट गए,
तमाम उम्र हम एक दुसरे से लड़ते रहे
मगर मरे तो बराबर में जाके लेट गए,
हमारी तश्ना नसीबी का हाल मत पुछो
वो प्यास थी के समुन्दर में जाके लेट गए,
न जाने कैसी थकन थी कभी नहीं उतरी
चले जो घर से तो दफ्तर में जाके लेट गए,
ये बेवक़ूफ़ उन्हे मौत से डराते हैं
जो खुद ही साया -ऐ -खंजर में जाके लेट गए,
तमाम उम्र जो निकले न थे हवेली से
वो एक गुम्बद -ऐ -बेदर में जाके लेट गए,
सजाये फिरते थे झूठी अना को चेहरे पर
वो लोग कसर -ऐ -सिकंदर में जाके लेट गए..!!
No comments:
Post a Comment