फ़रिश्ते आ के उनके जिस्म पर ख़ुशबू लगाते है
वो बच्चे रेल के डिब्बों में जो झाडू लगाते है
अन्धेरी रात मे अक़्सर सुनहरी मशअलें लेकर
परिन्दों की मुसीबत का पता जुगनू लगाते है
दिलों का हाल आसानी से कब मालूम होता है
कि पेशानी पे चन्दन तो सभी साधू लगाते है
ये माना आप को शोले बुझाने में महारत है
मगर वो आग जो मज़लूम के आंसू लगाते है
किसी के पांव की आहट से दिल ऐसे उछलता है
छलांगे जंगलों में जिस तरह आहू लगाते है
बहुत मुमकिन है अब मेरा चमन वीरान हो जाये
सियासत के शजर पर घोंसले उल्लू लगाते है..!!
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