बेवफाई की अब इन्तहा - सी हो गई है ,
तुझसे जुदा होकर जीने की आदत - सी हो गई है।
तुम लौटकर आओगी , हम फिर से मिलेंगे शायद,
रोज़ दिल को बहलाने की आदत - सी हो गई है।
तेरे वादों पर क्या भरोसा करते हम,
अब तो धोखा खाने की आदत-सी हो गई है।
खुशी में भी क्या मुस्कुराते हम
अब तो खुशी में भी रोने की आदत-सी हो गई है।
कहां चली गई तू अकेला मुझे छोड़कर,
अब तो तन्हाइयों में रहने की आदत-सी हो गई है।
हर मोड़ पर मिलती हैं ग़मों की परछाइयां,
अब तो ग़मों से समझौते की आदत-सी हो गई है..!!
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