Saturday 25 October 2014

चले हैं आज ज़माने को आज़माये हुए..!!

चले हैं आज ज़माने को आज़माये हुए
ये देखो खून में अपने ही हम नहाये हुए

न जाने मुझको हुआ कौन सा मक़ाम हासिल
लुटा के घर भी चला हूं मै सर उठाये हुए

ना उसकी ख़ता थी न थी ख़ता मेरी
निकल रहे हैं मगर हम नज़र चुराये हुए

लो आज फिर से उसने मेरे दिल को तोड़ा है
उसे भी वक़्त हुआ है मुझे सताये हुए

ये जो है हुस्न का सदक़ा समझ नहीं आया
मेरी पहलू में भी हैं वो नज़र झुकाये हुए

जहां मुहाल था एक पल भी ठहरना यारों
ज़माने बीते वहां हम को युग बिताये हुए

अपनी तबाहियों का ग़िला नहीं है हम को
हम आज भी हैं उसकी अज़्मतें बचाये हुए..!!

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