Friday 17 October 2014

रास्तों पे सब ही पहचाने से लोग हैं..!!

रास्तों पे सब ही पहचाने से लोग हैं
देखो करीब से तो अंजाने से लोग हैं

दिल में झांकोगे तो बस तन्हाईयां ही हैं
महफ़िल सजी है फिर भी वीराने से लोग हैं

करते हैं इश्क़ जानकर अंजाम इश्क़ का
नासमझ से लोग दीवाने से लोग हैं

जिसका वजूद ही नहीं, है उस से मोहब्बत
शम्मा नहीं है फिर भी परवाने से लोग हैं

हैं अश्क़ आह दर्द ही तन्ख्वाह इश्क़ की
छलके गिरे टूटे से पैमाने से लोग हैं

दिखता हो चाहे जो, है कुछ और मुख़्तसर
अपनी हक़ीक़तों के अफ़साने से लोग हैं

हर एक बिक रहा है ज़रूरत के भाव से
अस्ल में देखो तो चाराने से लोग हैं

टूटे हुए छूटे हुए लम्हों का जोड़ हैं
टुकड़ों में जोड़े बिखरे काशाने से लोग हैं

हर एक शय नशा है हर एक शय जुनूं
ज़िदगी साक़ी है मैख़ाने से लोग हैं

आज भी रोते हैं इक छोटी सी बात पर
बदले से ज़माने में पुराने से लोग हैं

छूते हैं आसमां और मिट्टी में पाँव हैं
महल की दीवारों में तहखाने से लोग हैं

अब आप ही समझाइये ये राज़-ए-ज़िंदगी
बाकी जहां में सब ही बचकाने से लोग हैं..!!

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