Saturday 25 October 2014

बारिश..!!

पाठशाला से बाहर निकलकर सनी ने भयभीत निगाहों से आसमान की तरफ देखा। उसके दिल की धड़कन अचानक बहुत तेज हो गई थी। पूरा का पूरा आसमान काले बादलों से ढँका हुआ था और दूर पूरब की ओर बारिश शुरू हो चुकी थी। उसके पास छतरी नहीं थीं। यद्यपि सबेरे ही उसे लगा था कि वर्षा होने वाली है परंतु माँगने पर पिता ने गुम होने के डर से उसे छतरी नहीं दी थी। अब तो उसे भीगते हुए ही जाना होगा। फिर भी सच में उसे इस बात की चिंता उतनी नहीं थी कि अगर वह पानी में भींग गया तो उसे बुखार चढ़ जायेगा या सर्दी लग जायेगी, बल्कि वह इस बात से अधिक उद्विग्न था कि अगर मेह के कीचड़ में उसका नया जूता खराब हो गया तो पिता उसे बहुत मारेगा।

उसने देखा अब बारिश पूर्व की ओर से चलती हुई उसके बिलकुल करीब तक पहुँच गई थी। वह एकबारगी कुछ भी निर्णय नहीं कर पाया कि उसे मकान में छिप जाना चाहिए और पानी रुकने तक इंतजार करना चाहिए या तेजी से घर की ओर दौड़ पड़ना चाहिए। मगर बादल देखकर उसे लगा कि कल सबेरे से पहले तक झड़ी खत्म होने के कोई आसार नहीं हैं। फिर यह भी पक्का है कि वह कितना भी तेज दौड़े तो आधे घंटे से पहले तो घर नहीं पहुँच सकता है। फिर भी उसने तेजी से दौड़ना शुरू कर दिया। तनिक देर में ही पानी घना हो गया। वर्षा की मोटी–मोटी बूँदें उसके सिर पर ओले की तरह पड़ रही थीं पर उसने महसूस किया कि उसकी पीठ पर बूँदें नहीं पड़ रही क्योंकि पीठ पर किताबों का बस्ता उसकी ढाल बना हुआ था। तब उसे ध्यान आया कि नया जूता तो कीचड़ से भरकर सिर्फ कुछ खराब हो जायेगा लेकिन किताबें तो पूरी गल जायेंगी। उसने सोचा कि आज उसे नया जूता खराब करने और पुरानी किताब गलाने के जुर्म में पिछले सभी दिनों से अधिक पिटाई लगेगी।

वह तेजी से दौड़ता जा रहा था। हवा और पानी भी जैसे एक दूसरे से प्रतिद्वन्द्विता कर रहे थे। उसकी बगल से गाड़ियाँ सर्र–सर्र गुजर रही थीं। मोटर की गुर्र–गों जब उसके नजदीक आती वह आंखें बन्द कर लेता और गाड़ी के तेज पहियों से उड़ा कीचड़ मिला पानी कचाक से उसके कपड़ों को रंग देता।

उसने अब तक सिर्फ जूते और किताबों की चिंता की थी, पर देखा कि कपड़े तो उससे भी पहले खराब हो गये हैं। उसने सोचा अगर उसकी माँ जिन्दा होती तो शायद आज वह पिटने से बच जाता। उसने देख रखा था कि पड़ोस का पिता जब अपने बच्चों को कभी पीटता है तो उनकी माँ दौड़ कर उन्हें बचाने आ जाती है। मगर अब यहाँ तो कोई उपाय नहीं हैं। आज तो उसे तीन–तीन जुर्मों की सजा भुगतनी है।

पक्की सड़क अब समाप्त हो चुकी थी। अब वह कच्ची सड़क पर दौड़ रहा था। अभी दस मिनट से कम का रास्ता नहीं होगा। वह दौड़-दौड़ कर थक भी चुका था पर उसने दौड़ना जारी रखा। कच्ची सड़क का कीचड़ उसके जूतों में घुस गया और जूते के तलवे से भी मिट्टी का लोंदा चिपक गया था, इससे जूता बहुत भारी हो गया था। पर चलने के सिवाय कोई उपाय नहीं था। उसकी रफ्तार अब थोड़ी धीमी हो गई थी। ज्यों ज्यों घर नज़दीक आ रहा था, उसका भय बढ़ता जा रहा था। जब चलते–चलते अंततः घर सामने आ गया तो उसने देखा कि पिता पहले ही दफ्तर से लौट चुका था और बाहर बरामदे में ही खड़ा था। पिता को घर पर मौजूद देख कर उसे दुख भी हुआ कि घर इतनी जल्दी क्यों आ गया। उसने अपने जूते की ओर देखा और तन पर गीले कपड़ों को महसूस करते हुए बस्ते की गीली किताबों के बारे में सोचा।

फिर आतंकित आँखों से पिता को देखते हुए आगे बढ़ा। उसे लगा कि उसके पाँव उठ ही नहीं रहे हैं। जैसे किसी चीज से चिपक गये हों। पिता ने सनी को सजल नेत्रों से देखते हुए सोचा कि इसकी माँ अगर होती तो सुबह उसे जरूर छतरी ले जाने की इज़ाज़त दे दी होती। उसे पश्चाताप होने लगा कि बच्चे को भी अपने जैसा भुलक्कड़ समझकर उसने छतरी नहीं दी और गुम जाने के डर से खुद भी छतरी लेकर नहीं गया। दफ्तर से भींगता हुआ ही आया। यदि बच्चे को उसने छतरी दे दी होती तो निश्चय ही सम्भाल कर रखता।

पिता को अचानक उस पर बहुत स्नेह हो आया। उसने आगे बढ़कर उसे गोद में उठा लिया। सनी को इस पर विश्वास नहीं हो रहा था, पर जब उसे पूरा यकीन हो गया कि वह पिता की गोद में हैं तो उसे इसका कारण एकदम समझ में नहीं आया।

पिता ने घर के भीतर ले जाकर उसे मेज पर बिठा दिया और उसके जूते के फीते खोलने लगा। सनी की नजर कोने में रखे पिता के जूते पर गई। उन जूतों में उसके जूते से भी अधिक कीचड़ था। खूँटी से टंगे पिता के कपड़े मिट्टी से एकदम सने थे। उसने तभी मेज पर रखी पिता के दफ्तर की फाइल देखी, वह बिल्कुल गल चुकी थी..!!

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