Friday 17 October 2014

वो समझें या ना समझें मेरे जजबात को..!!

वो समझें या ना समझें मेरे जजबात को,
मुझे तो मानना पड़ेगा उनकी हर बात को,
हम तो चले जायेंगे इस दुनिया से,
मगर आंसू बहायेंगे वो हर रात को,

जो आपने न लिया हो, ऐसा कोई इम्तहान न रहा,
इंसान आखिर मोहब्बत में इंसान न रहा,
है कोई बस्ती, जहां से न उठा हो ज़नाज़ा दीवाने का,
आशिक की कुर्बत से महरूम कोई कब्रिस्तान न रहा,

कोई रिश्ता टूट जाये दुख तो होता है,
अपने हो जायें पराये दुख तो होता है,
माना हम नहीं प्यार के काबिल
मगर इस तरह कोई ठुकराये दुख तो होता है,

बिकता अगर प्‍यार तो कौन नहीं खरीदता
बिकती अगर खुशियां तो कौन उसे बेचता
दर्द अगर बिकता तो हम आपसे खरीद लेते
और आपकी खुशियों के लिए हम खुद को बेच देते..!!

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